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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

जायेगा। जिनकी ईमानदारी, चरित्र और प्रतिष्ठामें किसी प्रकारके सन्देहकी गुंजाइश नहीं है, अगर ऐसे लोगोंकी स्वतन्त्रतापर प्रतिबन्ध लगा देनेके बाद भी जनता नहीं दबती तो मैं नहीं समझता कि सरकार विचार और व्यवहार दोनों ही दृष्टियोंसे सर्वथा दोष-मुक्त किसी आन्दोलनको समाप्त करने के लिए और भी अधिक प्रतिबन्ध लगानेकी मूर्खता करेगी। क्योंकि इस आन्दोलनके अहिंसात्मक स्वरूपने इस अत्यन्त अनुत्तरदायी सरकारको मात दे दी है, और परिणामस्वरूप अब वह हिंसाके बदले जन-मत और जन-चरित्रको दबाने और कुचलनेका निर्लज्ज प्रयास कर रही है। इसलिए मैं आशा करता हूँ कि समस्त भारतके कार्यकर्ता, यह समझते हुए कि देशकी शक्ति दिनोंदिन बढ़ रही है, इस दमनकी कोई परवाह नहीं करेंगे और कांग्रेस द्वारा प्रस्तुत योजनाके अनुसार राष्ट्रीय शक्तिका संगठन करते रहेंगे।

क्या आप नई विधान परिषदोंकी कार्यविधिके बारेमें ठीक जानकारीपर आधारित कोई राय दे सकते हैं ?

जहाँतक मैं इन परिषदोंकी कार्यविधिको समझ सका हूँ, निराशावादियोंकी आशंकाएँ सही सिद्ध हो रही हैं। इसके कारण नौकरशाहीकी अनिष्ट करनेकी असली ताकतमें जरा भी कमी नहीं हुई है। वह ईमानदार लोगोंकी आँखोंमें धूल झोंकनके लिए अपनी कूटनीतिक क्षमताका अत्यन्त प्रभावकारी ढंगसे उपयोग कर रही है, और सारी ताकतोंसे निपटने के लिए सिद्धान्तहीन व्यवहारका सहारा ले रही है। परिणाम यह है कि अब हमारे हाथों में पहलेकी अपेक्षा अधिक कीमती और सुन्दर दिखनेवाले खिलौने रख दिये गये हैं, ताकि हम रोएँ-चिल्लाएँ नहीं। मुझे दुःखके साथ कहना पड़ता है कि यह बात लॉर्ड सिन्हाके[१] प्रान्तकी अपेक्षा किसी अन्य प्रान्तमें अधिक सच नहीं उतरी है। बिहार एक ऐसा प्रान्त है जहाँ हिंसाका सबसे कम खतरा है, जहाँ नेताओंने आन्दोलन- की सम्पूर्ण भावनाको आत्मसात् कर लिया है, जहाँ नेताओंकी सम्पूर्ण शक्ति मद्य-निषेध, शिक्षा और उद्योग-धन्धोंपर केन्द्रित है। यदि सरकार केवल उदासीन रहती तो बिहारी पूरी तरहसे मद्य-विरोधी हो जाते और सारी दुनिया के सामने कानूनकी सहायता लिये बिना मद्य-निषेध-सम्बन्धी सुधारका एक दृष्टान्त रख देते। वे शिक्षा-आन्दोलनमें क्रान्ति- कारी परिवर्तन कर देते और करदाताओंका बोझ बढ़ाये बिना गरीबसे-गरीब आदमीके लिए भी शिक्षा सुलभ करा देते, तथा पुनः चरखेका प्रचलन करवाकर बिहारमें उसी तरह दूध-दहीकी नदियाँ बहा देते जैसी, मेरा विश्वास है, सचमुच एक समय में बहती थीं। इसलिए दुनिया यह जान ले कि बिहारमें, और बिहारमें ही क्यों, समस्त भारतमें दमनका अर्थ है इन तीनों महत्वपूर्ण सुधार आन्दोलनोंका दमन। इस कसौटीपर कसने से नये विधान-मण्डलोंको कमसे-कम फिलहाल असफल ही घोषित करना चाहिए।

भविष्यके विषयमें आपका क्या खयाल है ?

जहाँतक अनुमान लगा सकता हूँ, आन्दोलन अपने वर्तमान मार्गपर चलता रहेगा। हम दिनोंदिन हाथकी कताई और बुनाईपर ज्यादा ध्यान दे रहे हैं तथा इस तरह भारतको आर्थिक दृष्टिसे आत्मनिर्भर बना रहे हैं और शराबखोरीकी आदतको दूर

 
  1. १. उस समय लॉर्ड सिन्हा बिहार और उड़ीसाके गवर्नर थे