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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


भारतको साम्राज्यसे भिन्न, भावी ब्रिटिश राष्ट्रमण्डलमें एक स्वतन्त्र साझेदारकी तरह रहना है तो खिलाफतकी शर्तें टर्कीके राजनीतिक नेताओंकी अपेक्षा मुसलमानोंके धार्मिक नेताओंकी सलाहसे ही तय करनी होंगी।

[ अंग्रेजीसे ]

बॉम्बे क्रॉनिकल, १७-३-१९२१


२२७. भाषण : आर्वीमें[१]

१७ मार्च, १९२१

आपमें से अनेक लोग स्वदेशी कपड़े पहने हुए हैं, लेकिन सब लोगोंकी पगड़ीका कपड़ा तो मैं विदेशी ही देखता हूँ। आज कोई भी विदेशी कपड़ा पहनना पाप है। हमें उसका तुरन्त त्याग कर देना चाहिए और स्वदेशी कपड़ेके लिए हममें से हर व्यक्तिको सूत कातना चाहिए। सूत कातने में हमारे धर्म और हमारी सभ्यताकी रक्षा निहित है, अर्थकी रक्षा तो है ही। दूसरे हमें शराबका त्याग करना चाहिए। जो लोग शराब पीते हों उन्हें उसकी लत छोड़ देने के लिए समझाया जाना चाहिए। मगर वे न समझें अथवा शराब पीना बन्द न करें तो उनपर जोर-जबरदस्ती नहीं करनी है। उन्हें प्रेमसे समझाना चाहिए; पाँव पड़कर समझाना चाहिए और न मानें तो भी, कोध किये बिना बार-बार समझाना चाहिए। यह काम स्त्रियाँ अच्छी तरह कर सकती हैं। हमें चोरी, व्यभिचार और झूठका परित्याग करना चाहिए तथा अन्त्यजोंके प्रति अपने व्यवहारमें सुधार करना चाहिए।

अस्पृश्यता अगर हिन्दू धर्मका अंग है तो मैं कहूँगा कि उस हदतक उसमें शैता- नियत है। लेकिन मेरी दृढ़ मान्यता है कि हिन्दू धर्म में ऐसी कोई बात नहीं है। अमुक जातिके व्यक्तियोंको स्पर्श न करने में धर्म नहीं अधर्म है। अस्पृश्यताको धर्म मानकर हमने अनेक पाप किये हैं; उनका प्रायश्चित्त तो हमें करना ही है। मैं किसीके साथ रोटी-बेटीका व्यवहार करने की बात नहीं कहता। सिर्फ इतना ही कहता हूँ कि स्पर्श करने में हम जो दोष मानते हैं, हमारी वह मान्यता हमारे मनसे निकल जानी चाहिए। अपने एक अंगको अस्पृश्य मानकर हमने उसे सड़ा दिया है और उसके दर्दसे हमारे सारे शरीरमें पीड़ा हो रही है। अंग्रेज आज हमें अछूत मानते हैं। उपनिवेशों में हमें व्यापार करनेके लिए अलग जगह दी जाती है। हमारे रहने के मुहल्ले और मुसाफिरी करने के लिए रेलगाड़ीके डिब्बे अलग होते हैं। हम अस्पृश्य- —'परिया'— माने जाते हैं। अन्त्यजोंके प्रति लम्बे समयसे हम जो व्यवहार करते आ रहे हैं, वह एक बड़ा अन्याय है और इस अन्यायको हमें अवश्यमेव छोड़ देना चाहिए। जब हम इस सम्बन्धमें अपने व्यवहारको बदलेंगे तब अन्त्यजोंका जीवन अधिक स्वच्छ हो जायेगा । मेरा अनुभव ऐसा है कि उच्च कौमके माने जाने वाले अनेक व्यक्तियोंकी अपेक्षा कुछेक

 
  1. १. महादेव देसाईके यात्रा विवरणसे उद्धृत । आर्वी महाराष्ट्रमें वर्धाके समीप एक कस्बा है ।