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भाषण : नागपुरमें

अन्त्यजोंके घर अधिक साफ होते हैं। भंगीका धन्धा हलका नहीं है। समाजके जीवनके लिए वह अत्यन्त महत्वपूर्ण है। वह अपवित्र नहीं है। मैंने स्वयं दक्षिण आफ्रिकामें और यहाँ भी अनेक बार रोगियोंके पाखानोंको साफ किया है, लेकिन किसीने भी उस कामको अपवित्र अथवा हलका नहीं कहा है। उलट, मेरे उस कार्य की प्रशंसा की है। प्रत्येक माँ अपने बच्चेका मैला साफ करती है। उसमें सेवा है, महत्ता है। माता- को स्वप्नमें भी कौन अस्पृश्य मानेगा? अस्पृश्यताकी रूढ़िमें सुधार करनेकी बात जितनी महत्वपूर्ण है उतनी ही हिन्दू-मुस्लिम ऐक्यको बढ़ानेकी बात भी है। उसके लिए हिन्दूको मुसलमान अथवा मुसलमानको हिन्दू बननेकी कोई जरूरत नहीं है। दोनों अपने अपने धर्मका कट्टरतासे पालन करते हुए एक-दूसरेके धर्मका सम्मान करें और एकता बनाये रखें, इसीमें हमारी शोभा है।

[गुजरातीसे]

नवजीवन, ३-४-१९२१


२२८. भाषण : नागपुर में[१]

१८ मार्च, १९२१

मुझे दुःख है कि ऐसी विशाल सभामें मेरे भाई मौलाना शौकत अली हाजिर नहीं हैं। अबतक हम सारे हिन्दुस्तान में साथ-साथ घूमते थे। लेकिन दिसम्बरमें कांग्रेस अधिवेशनके बाद हमने सोचा कि हिन्दू-मुसलमानोंके दिल इतने साफ हो गये हैं कि अब साथ-साथ घूमनेकी जरूरत नहीं है। यदि सात महीने में स्वराज्य प्राप्त करना हो, खिलाफतके सम्बन्धमें मुसलमान भाइयोंको जो दुःख हुआ है उसे दूर करना हो और पंजाबको न्याय दिलवाना हो तो अलग-अलग जगहोंमें घूमकर अपना काम निपटाना चाहिए। मुझे उम्मीद है, ऐसी माँग कोई भी व्यक्ति न करेगा कि हर जगह हम दोनों साथ-साथ जायें । हिन्दुस्तान में साढ़े सात लाख गाँव हैं। उन सबमें तो एक-एक व्यक्ति भी कदापि नहीं पहुँच सकता ।

यहाँ इतनी बड़ी सभाको देखकर मुझे खुशी हुई है। यहाँ आप लोग असहयोग आश्रम और राष्ट्रीय शाला चला रहे हैं, इसलिए मैं आपको बधाई देता हूँ। इस शहरके नेता भगवानदीनजी[२] जेल गये हैं, दूसरे नेता डा० परांजपेके नाम एक महीने तक भाषण न करनेका आदेश जारी किया गया है और तीसरे डाक्टर चोलकरपर मुकदमा चल रहा है[३]— इस सबके लिए भी मैं आपको बधाई देता हूँ। लेकिन आपने कांग्रेस और लीगके हुक्मको तोड़ा है — आपने पत्थर फेंके हैं इसके लिए मुझे दुःख होता है। भाई अस्वातपर जो मौलाना शौकत अलीके मन्त्रीके रूपमें काम

 
  1. १. महादेव देसाईके यात्रा विवरणसे उद्धृत ।
  2. २. असहयोग आश्रमके अवैतनिक प्रिंसिपल जिन्होंने डा० चोलकरके साथ शराबको दुकानोंपर धरना देना शुरू किया था ।
  3. ३. उनके द्वारा दिये गये एक भाषणके सिलसिलेमें, देखिए "टिप्पणियाँ ", ३०-३-१९२१ ।