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भाषण : नागपुरमें

स्कूल न छोड़ें और वकील अपनी वकालत न छोड़ें तो भी कोई हर्ज नहीं। उससे स्वराज्य मिलने में कतई कोई रुकावट नहीं आयेगी; लेकिन अगर आप संयमको तोड़ेंगे तो अवश्य बाधा पड़ेगी। दूसरी शर्त हिन्दू-मुस्लिम एकता है।

तीसरी शर्त स्वदेशीकी है। टेनिसके बल्लेके बजाय आप चरखा चलायें। यदि विदेशी कपड़ेका बहिष्कार करना है तो सबके हाथमें चरखा होना चाहिए। एक समय ऐसा था, जब ब्रिटिश कपड़ेका बहिष्कार हास्यास्पद जान पड़ता था, असम्भव जान- पड़ता था। आज वह विचार दूर हो गया है। स्वदेशी एक ऐसा व्रत है जिसका पालन सब लोग कर सकते हैं। अगर हमसे इतना भी नहीं हो सकता तो हमें स्वराज्यकी आशा छोड़ देनी चाहिए। हम लँगोटी पहनकर घूमें लेकिन विदेशी कपड़े न पहनें। नागपुरमें बुनकर बहुत हैं। उन्हें चाहिए कि वे अपवित्र विदेशी सूतको बुनना छोड़ हमारी अपनी माँ-बहनोंके हाथके कते हुए सूतको बुननेका निश्चय करें। हाथका कता हुआ सूत कच्चा नहीं है बल्कि हमारा हृदय कच्चा है। इसीसे उसे बुनने में हम हिच- किचाते हैं।

कितने ही मित्र मुझे पूछते हैं कि क्या फिलिस्तीन[१] भी मिलेगा ? मेरा कहना है कि अगर आप फकीर बन जायें और शान्ति बनाये रखेंगे तो फिलिस्तीन भी मिलेगा। औरोंको फकीर बनाने में अगर आप सन्तोष मानेंगे तो वह नहीं मिलेगा। चाहे किसी भी व्यक्तिको जेल भेज दिया जाये, हमें शान्ति ही रखनी चाहिए। वे जायें, आप भी जानेकी तैयारी करें; लेकिन मार-धाड़ करके नहीं, शुद्ध काम करके । फिर सर- कार जिस दिन आपको जेलमें डालेगी उसी दिन हमें विजय प्राप्त होगी। जिस दिन वह इस तरह शासन चलाना चाहेगी, उस दिन वह सूखे पत्तेके समान झड़ जायेगी । किसीके जेल जानेपर तूफान उठाना दुर्बलताकी— भयकी— निशानी है।

अब मैं आखिरी बात कहे देता हूँ। आप लोग तिलक महाराजको चाहते हैं। हर जगह उनकी 'जय' बोली जाती है। यहाँ उनकी तसवीर रखी है। उनकी आत्मा भी यहाँ मौजूद है, वह साक्षी है। 'स्वराज्य' उनका जीवनमन्त्र था । उसको प्राप्त करनेका प्रयत्न करना हमारा फर्ज है। उनके नामसे "स्वराज्य-कोष" चालू है, सो कोई उनका पुतला बनाने अथवा उनके नामसे बाग बनवाने के लिए नहीं, अपितु स्वराज्य प्राप्त करनेकी प्रवृत्तिको बढ़ावा देनेके लिए, उसका पोषण करनेके लिए है। यह सौदागरी है, हमारे ही लाभकी बात है। जून महीने से पहले एक करोड़ रुपया इकट्ठा हो जाना चाहिए। यह कोई बड़ी बात नहीं। मैं सुनता हूँ कि पैसा न होनेकी वजहसे चरखे नहीं चल पा रहे हैं। यह शर्मकी बात है। सब अपना-अपना हिस्सा दें तो हमें जितने पैसे चाहिए उतने पैसे मिल जायेंगे। और कुछ नहीं तो आप शराब, बीड़ी आदि व्यसनोंको छोड़ दें और उससे बचनेवाली रकमसे इस कोषको भरें।

[ गुजरातीसे ]

नवजीवन, ३-४-१९२१

 
  1. १. प्रथम विश्व युद्ध के बाद टर्कीसे फिलिस्तीनको छीन लिया गया था और इस प्रदेशको ब्रिटिश अधिशासनमें रखा गया था ।