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२२९. भाषण : अमरावतीमें[१]

१९ मार्च, १९२१

भाई यादवडकरने[२] अपना सर्वस्व देशको अर्पित कर दिया था। कांग्रेस, लीग व लोक-संस्थाएँ हमसे जिन गुणोंकी अपेक्षा करती है, वे सब उनमें थे। अगर हम सभी उनके जैसे होते तो हमें स्वराज्य कभीका मिल चुका होता। एक समय वे भारतमें स्वराज्य स्थापित करने के लिए हिंसक उपायोंकी जरूरत माननेवालोंमें से थे। लेकिन बादमें उनके विचार बदल गये थे। वे पक्के सत्याग्रही बन गये थे और कांग्रेस तथा लीगके कार्यक्रम में ही हिन्दुस्तानका भला है, ऐसा उनका दृढ़ विश्वास हो गया था।

कांग्रेसके प्रस्तावसे हम हर हालत में शान्ति बनाये रखने के लिए बँधे हुए हैं। दोनोंको शान्तिका पालन कर सकनेकी अपनी शक्तिके सम्बन्धमें हमें और अंग्रेजों—दोनोंको ही सन्देह है। हमें उन्हें यह बता देना चाहिए कि हम तलवार और बन्दूकके भय से दबकर नहीं बल्कि धर्मवृत्तिकी प्रेरणासे शान्तिका पालन करते हैं। दादासाहब खापर्डेसे[३] मेरा पहलेसे ही मतभेद है। उनका रास्ता एक है और मेरा रास्ता दूसरा । मैं जानता हूँ कि वे जिस रास्तेपर चलना चाहते हैं उस रास्तेसे स्वराज्य नहीं मिल सकता । तथापि मैं उन्हें भला-बुरा नहीं कहता। उनके पक्षके लोगोंको कुएँसे पानी न भरने देनेमें कांग्रेसकी आज्ञाका भंग होता है। अपने विरोधीके प्रति, वह अकेला हो तो भी हमारा व्यवहार ऐसा होना चाहिए कि वह हमारी ओरसे अपने आपको बिल्कुल निरापद महसूस करे। अलबत्ता हमें दादासाहब खापर्डेसे विधान परिषद् आदि में किसी तरह की सेवाएँ नहीं लेनी चाहिए; हाँ, उनकी सेवा हम अवश्य करें। वे बीमार पड़ें तो हम उनकी सेवा करें। लॉर्ड चैम्सफोर्ड बीमार पड़ें तो उनकी भी हम सेवा करें, लेकिन उनके दिये खिताबको निस्सन्देह स्वीकार न करें।

हमारी लड़ाई तो आत्मशुद्धिकी है। आत्मशुद्धि क्या है ? शराब आदिका उपयोग करनेवाले लोगोंको ये चीजें छोड़ देनी चाहिए। इनकी बिक्रीसे सरकारको सत्रह करोड़ रुपया मिलता है। जाहिर है कि अगर सरकारको अपनी यह आय बन्द होती दिखेगी तो वह हमें सुखसे नहीं बैठने देगी। शराबसे होनेवाली कमाईसे अगर हमारे बालकोंको शिक्षा मिलती हो तो वह हमें स्वीकार्य नहीं होनी चाहिए। स्वराज्यमें शराबकी कमाई तो हमारे लिए हराम होनी चाहिए। उसके बिना हम बच्चोंको शिक्षा दे सकते हैं, ऐसा मेरा दृढ़ विश्वास है । डा० चोलकर द्वारा दिया गया भाषण मैं पढ़ चुका हूँ। मजिस्ट्रेट उनके साथ न्याय करे अथवा अन्याय लेकिन इतना तो मैं स्पष्ट रूपसे कहता

 
  1. १. महादेव देसाईके यात्रा विवरणसे उद्धृत
  2. २. अमरावतीके यादवडकर पटवर्धन, जिनकी मृत्यु जनवरी १९२१ में हुई थी; देखिए "स्मरणांजलि ", १२-१-१९२१ ।
  3. ३. बरारके प्रसिद्ध वकील और बाल गंगाधर तिलकके प्रवल समर्थक ।