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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


मिल कर रहेगा; तब हमारी ताकत इतनी बढ़ जायेगी कि कोई हमारी स्वतन्त्रताके आड़े आ ही नहीं सकेगा।

एक नमूना

मैं सैकड़ों सभाओं में जा चुका हूँ। अब कदाचित् ही कहीं सभामें कुर्सियोंका इन्तजाम होता है। लखनऊकी खिलाफत परिषद्में[१] किसीके लिए भी कुर्सी नहीं थी। मौलाना मुहम्मद अली अध्यक्ष थे। वे गद्देपर बैठे थे। दूसरे उमराव-उलेमा और शिक्षितवर्गके लोग भी जमीनपर बैठे थे। लेकिन पूर्ण स्वदेशीकी व्यवस्था तो मैंने हरि- यानेमें[२] ही देखी। कांग्रेसके आगामी अधिवेशनकी मैं जिस रूपमें कल्पना कर रहा हूँ, कौन जाने यह उसीका एक छोटा नमूना ही हो । परिषद्के मण्डपमें केवल खादीका ही उपयोग किया गया था। बीच में एक ऊँचा मंच बना हुआ था। उसपर कितने ही सदस्य पालथी लगाकर बैठे हुए थे। पीछे की ओर सैकड़ों स्त्रियाँ थीं। दायें हाथकी ओर खादीकी प्रदर्शनी थी। उसमें सुन्दर फुलकारियाँ, हाथके सूतसे बने रुमाल और खादीके थान बिछे हुए थे। कातने और बुनने में निष्णात व्यक्तियोंको इनाम बाँटे गये थे। महीन खादी तीन प्रकारकी थी; मैं उसे ले भी आया हूँ। काढ़े हुए रुमाल और फुलकारी भी लाया हूँ। इन्हें आश्रम में देखा जा सकता है। स्वयंसेवकोंने खादीके पायजामें, कुरते और टोपियाँ पहन रखी थीं। नवीन राष्ट्रीय शालाके[३] सब विद्यार्थी खादीकी पोशाक पहने थे। एक भी विदेशी वस्तु मुझे इस परिषद् में नजर नहीं आई। चारों ओर जो नारे लिखे दिखाई पड़ते थे वे भी वहाँकी मातृभाषा उर्दूमें ही थे; और प्रस्ताव भी भावी कार्यक्रम से ही सम्बन्धित थे । बल्लियों और लकड़ियों को किरायेपर लेनमें जो देना पड़ा, वही इस मण्डपपर आनेवाला खर्च हुआ। खादी तो सारीकी-सारी जैसीकी-तैसी रह जानेवाली थी। झंडे भी खादीके थे।

दुःखीजनोंका एक मित्र

जालन्धर, होशियारपुर, हरियाना सब साथ-साथ ही आते हैं। वे पंजाबके पूर्वमें हैं। वहाँसे अब में पाठकोंको पश्चिम मुल्तानमें ले जाना चाहता हूँ। मुल्तानमें प्लेगका प्रकोप हमेशा बना रहता है। मुल्तान में प्रह्लादका जन्म हुआ माना जाता है; वहाँ प्रह्लादका मन्दिर भी है। दीवान मूलराजका[४] जन्मस्थान मुल्तान था। ऐसा माना जाता है कि हरियाना में पाण्डवोंने अज्ञातवासका समय बिताया था। मुल्तान गन्दा शहर है, वहाँ धूलका तो कोई हिसाब ही नहीं। मुल्तानकी नगरपालिका भी निकम्मी मानी जाती है। प्लेगने एक साधु-पुरुषको जन्म दिया। उनका नाम है भाई मूलचन्द | पैसे- टकेसे वे सुखी थे, आज भी थोड़े-बहुत होंगे। देखने में वे मैले-कुचले जान पड़ते हैं। गुज-

  1. १. २६ फरवरी, १९२१ को हुई ।
  2. २. १५ फरवरी, १९२१ को भिवानी में हुआ हरियाना ग्रामीण सम्मेलन ।
  3. ३. हरियाना, जिला रोहतकमें ।
  4. ४. पंजाबके अन्तिम सिख शासक के मुख्यमन्त्री। इस शासकको १८४९ के द्वितीय सिख-युद्ध में अंग्रेजोंने परास्त किया था।