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कौंसिलोंके चुनाव

‘दलित’ वर्गीके उद्धारके लिए उतने ही उत्साहसे काम करेगा जितना कि वह हिन्दू-मुस्लिम एकताके लिए करता है। हमें उनके साथ अपने भाई-जैसा बरताव करना चाहिए और उन्हें वही अधिकार देने चाहिए जो हम अपने लिए माँगते हैं।

[अंग्रेजी से]

यंग इंडिया, २४-११-१९२०


१८. कौंसिलोंके चुनाव[१]

जहाँतक मतदाताओंका सम्बन्ध है, कौंसिलोंके सम्बन्धमें बम्बई प्रेसीडेन्सी तथा अन्य स्थानोंके निर्वाचनोंसे असहयोगकी नीतिकी सफलता जाहिर हो गई है। कहीं-कहीं तो लगता है कि एक भी मतदाताने अपना मत नहीं दिया। ऐसी स्थिति में तथाकथित प्रतिनिधि क्या करेंगे? वे जानते हैं कि मतदाता मतदानके लिए आलस्यवश नहीं वरन् सोच-समझकर ही नहीं गये हैं। वे यह भी जानते हैं कि हजारों मतदाताओंने लिखित रूपसे अपनी यह इच्छा घोषित की है कि वे कोई प्रतिनिधि नहीं चुनना चाहते। सदस्योंके पास मतदाताओंको प्रभावित करने और उन्हें मत देनेकी जरूरत समझानेका पूरा अवसर था। वे धमकी या धरना देनेकी भी शिकायत नहीं कर सकते। क्योंकि धरना न देनेकी हिदायत दे दी गई थी और जहाँतक मैं जानता हूँ, इस हिदायतका पूरी तरहसे पालन किया गया है। इन तथ्योंको देखते हुए निर्वाचित घोषित किये गये सदस्योंका क्या यह स्पष्ट कर्त्तव्य नहीं है कि वे कौंसिलोंसे कुछ भी सम्बन्ध न रखें? मतदाताओंने तो साफ-साफ बता दिया है कि वे संशोधित कौंसिलोंसे कुछ सरोकार नहीं रखना चाहते। यदि सदस्य इस यथासम्भव स्पष्टतम प्रतिकूल समादेशके रहते हुए भी कौंसिलोंमें जानेका आग्रह करते हैं तो वे जनमतका प्रतिनिधित्व करनेवाली संस्थाओंको एक मखौल बना देंगे।

यदि तथाकथित प्रतिनिधि अपने मतदाताओंके आदेशको नहीं मानते, तो मतदाताओंके लिए रास्ता बिलकुल साफ है। उन्हें मतदाता संघ बनाने चाहिए और इन संघोंके द्वारा अविश्वासके प्रस्ताव पास करने चाहिए; उन्हें अपने-अपने क्षेत्रके सदस्योंको लिखकर अवश्य सुचित करना चाहिए कि उन्होंने स्वयंको जो निर्वाचित घोषित होने दिया है उसे हम ठीक काम नहीं मानते। और इसके साथ यह भी होना चाहिए कि किसी भी हालतमें मतदाता इन सदस्योंसे कोई काम कतई न लें। उनके लिए कौंसिल है ही नहीं। उन्हें उससे कोई राहत पानेकी कोशिश नहीं करनी चाहिए। यदि मतदाताओंके इस निर्णय के बाद भी कौंसिलका निर्माण हो जाता है तो उस समय मतदाताओंके लिए दूसरी परीक्षाका समय आयेगा। कौंसिलोंमें प्रश्न उठाकर अपनी शिकायतें पेश और प्रकाशित करनेका बहुत लोभ होगा। लेकिन मतदाताओंको इस लोभका संवरण करना होगा।

  1. ये चुनाव नवम्बर १९२० में हुए थे तथा बम्बई विधान परिषद् के लिए १६ नवम्बरको।