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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


२. जहाँ प्लेगके लक्षण प्रकट हो चुके हों वहाँ सफेदी आदि करवाकर कमसे-कम दस दिनतक उस घरका उपयोग नहीं किया जाना चाहिए।

३. अगर घरमें सील हो, उजाला न हो और हवा कम आती हो तो इन तीनों खामियोंको दूर किया जाना चाहिए।

४. घरमें चूहोंके बिल हों तो बिल आदि इस तरह भर दिये जायें जिससे उनमें चूहे न रह सकें।

यदि इतनी बातें ध्यान में रखी जायें तो निःसन्देह प्लेग नहीं फैलेगा। मैं जानता हूँ कि उपाय बताना आसान है, उनपर अमल करना मुश्किल है। इसीसे प्लेगने हिन्दुस्तान में घर कर लिया है। गरीबीके होते हुए भी जितने उपायोंपर अमल किया जा सके, करना चाहिए। प्लेगको रोकने के उपाय सहल हैं। और जो जो उपाय मैंने सुझाये थे उन्हें फिर दुहरानेका मन करता है:

१. हवा और रोशनीवाले घरोंमें ही रहने की आदत डालनी चाहिए।

२. ऐसे घर बनाये जाने चाहिए जिनमें चूहे बिल आदि न बना सकें।

३. पाखानेके लिए कोई बालटी या बरतन रखा जाना चाहिए। इस्तेमालके बाद उसपर काफी मिट्टी डाल देनी चाहिए जिससे सब मैला ढक जाये और सिर्फ धूल-ही-धूल दिखाई दे।

४. पेशाब भी किसी बर्तनमें ही किया जाना चाहिए।

५. पाखाना घरके किसी अन्य भागकी तरह ही साफ होना चाहिए।

इन नियमोंके महत्वपर लिखनेकी मुझे फुर्सत नहीं है लेकिन मेरा विशेष अभिप्राय यह है कि यद्यपि हम व्यक्तिगत रूपमें शौचके नियमोंका ठीक-ठीक पालन करते हैं तथापि शौचके सामाजिक नियमोंसे हम परिचित नहीं हैं और अगर हैं तो उनका पालन नहीं करते और परिणामस्वरूप अनेक व्याधियोंके शिकार बनते हैं।

पदकका त्याग किया

इस अस्पतालकी बात बताते समय मुझे यह बताना भी नहीं भूलना चाहिए कि भाई मूलचन्दको उनकी सेवाओंके लिए जो स्वर्ण पदक मिला था उसे उन्होंने उसी दिन लौटानेका निश्चय किया।[१] उसी दिन दो प्रसिद्ध वकीलों- लाला केवलकृष्ण और लाला बोधराजने एक वर्षके लिए अपनी वकालत बन्द करने के निर्णयका ऐलान भी किया। इन दोनों वकीलोंकी सार्वजनिक सेवाका मुल्तानके जन-जीवनपर अच्छा प्रभाव पड़ा। उन्होंने समझ लिया था कि वकालतका धन्धा जारी रखने के कारण मुल्तानकी प्रगतिमें अवरोध उत्पन्न हो गया था। ऐसी कितनी जगहें हैं जहाँ आज यही बात हो रही है। जहाँ नेतागण असहयोगके स्वरूपको समझ नहीं पाये हैं या समझनेपर भी उसका पालन करने में असमर्थ रहे हैं वहाँ-वहाँ असहकार आन्दोलन आगे नहीं बढ़ सका है; क्योंकि 'श्रेष्ठ-जन जैसा आचरण करते हैं, इतर वर्ग भी उसीका अनुसरण करता है।'[२]


  1. १. देखिए “भाषण : मुल्तान में", ५-३-१९२१ ।
  2. २. भगवद्गीता, ३-२१