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राष्ट्रीय तिलक स्वराज्य कोष


सियालकोटका उदाहरण

अपनी यात्रा के दौरान मैं जहाँ-कहीं गया हूँ मैंन यह अनुभव किया है कि यदि शुद्ध कार्य करनेवाला एक व्यक्ति भी मिल जाये तो असहयोग सुचारु ढंगसे चलने लगे। अकेले, आगा सफदरने ही सियालकोटके जन-जीवनको उन्नत बना दिया है। वे एक बहादुर और खानदानी वकील हैं। उन्होंने सितम्बरसे पहिले अर्थात् जब खिलाफतका प्रस्ताव पास हुआ तभीसे डा० किचलूके साथ वकालत छोड़ी। उनका त्याग, उनका सादापन और उनका सत्य उनके कार्य में दिखाई पड़ता है। आगा सफदर, असहयोग आन्दोलनमें शामिल होनेसे पहले सियालकोटके जीवनमें खासा भाग लिया करते थे। इसीसे उनके नेतृत्वमें सियालकोटमें असहयोगका बहुत काम हो रहा है। एक बड़ी इस्लामी शाला राष्ट्रीय स्कूलमें परिवर्तित हो गई है। चरखेका काम जोरोंपर है। उनकी पत्नी तथा दूसरी बहनोंके शरीरपर भी मैंने सियालकोटमें खादीके कपड़े ही देखे। मुझे अनेक स्थानोंपर ऐसे अनुभव हुए हैं। पंजाबके अनुभवोंका वर्णन करते हुए सियालकोटका सुन्दर उदाहरण मुझे याद हो आया। मैंने यह भी देखा है कि जिन लोगोंने शुद्ध भावसे त्याग किया है उन सबकी प्रतिष्ठा बढ़ी है और उन्होंने खोया तो कुछ भी नहीं है। पैसेकी हानि हुई हो, सो भी नहीं कहा जा सकता। वे जीविका-भर कमा लेते हैं और उसके उपरान्त कुछ लेनेका अधिकार किसे रह जाता है? समाज-सेवकको तो निश्चय ही नहीं। उसके हाथ पाक-साफ होने चाहिए। उसके निजी धन्धे कम ही होने चाहिए और उसकी जरूरतें कमसे-कम होनी चाहिए।

[ गुजरातीसे ]

नवजीवन, २०-३-१९२१

२३२. राष्ट्रीय तिलक स्वराज्य कोष

इस कोषके सम्बन्धमें में पंजाबकी अपनी यात्रा विषयक टिप्पणीमें संकेत कर चुका हूँ। हमें इतना चन्दा इकट्ठा करना चाहिए जो लोकमान्यकी स्मृतिके योग्य हो। लोगों में उनके प्रति अनन्य भक्तिभाव है। इसका कुछ अन्दाज वे लोग ही लगा सकते हैं जो लोकमान्यके अवसानके समय वहाँ उपस्थित थे और उनकी शव यात्रामें शामिल हुए थे। क्या वह भक्ति अभीतक कायम है ? इन थोड़े महीनोंके दौरान लोगोंको इस प्रश्नका उत्तर देनेका अवसर है।

लोकमान्यके हमारे इस स्मरणका रूप कैसा होगा ? उनकी कोई मूर्ति नहीं बनाई जायेगी। उस चन्देकी रकमसे स्वराज्य प्राप्त करना है, और चन्देका मुख्य उपयोग बच्चोंको शिक्षण देनेमें, चरखेकी प्रवृत्तिको चलानेमें और जनताके सेवकों के परिपालनमें किया जायेगा। मतलब यह कि जो रकम हम देंगे उसका पूरा-पूरा

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