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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

उपयोग हमारे लिए ही होगा। रकमके इससे अधिक सुन्दर उपयोगकी कमसे-कम मैं तो कल्पना नहीं कर सकता ।

लोकमान्यके स्मारकके लिए भारत एक करोड़ रुपया इकट्ठा करे, यह बात किसीको बहुत ज्यादा नहीं लगेगी। स्वराज्य प्राप्त करने के लिए एक करोड़ रुपया इकट्ठा करना हमारे लिए बायें हाथका खेल होना चाहिए। हमें जितना चाहिए यदि उतना रुपया भी इस प्रवृत्तिके लिए हम इकट्ठा न कर सकें तो स्वराज्यकी माँग करने अथवा उसको प्राप्ति करनेका हमें कोई अधिकार नहीं रह जाता। यदि जनता विदेशी कपड़ेका त्याग करने के लिए तैयार न हो, सूत कातने में आनाकानी करे, धन न दे तो उसे स्वराज्यका क्या हक हो सकता है? इसलिए एक करोड़ रुपयेको तो मैं कमसे कम रकम समझता हूँ। इतनी रकम इक्कीस प्रान्तों में से मिलनी चाहिए। इनमें से कितने ही प्रान्त गरीब हैं, कितने ही बहुत छोटे हैं; उनसे उनके हिस्से के पैसे प्राप्त करने की आशा नहीं की जा सकती। हाँ, बम्बई, गुजरात, पंजाब आदिसे अधिक मिलने की आशा अवश्य की जा सकती है।

यह रकम हमें तीस जूनतक अवश्य उगाह लेनी चाहिए। बहुत ज्यादा लोगोंसे अगर हम यह रकम उगाहें तो किसीपर बोझ नहीं पड़ेगा और हम सहज ही एक करोड़ रुपया इकट्ठा कर सकेंगे। मेरी तो सलाह है कि हमें तुरन्त ही यह चन्दा उगाहना आरम्भ कर देना चाहिए और जूनके अन्ततक पूरी रकम उगाह लेनी चाहिए। मात्र निश्चयकी और खरे स्वयंसेवकोंकी जरूरत है। इस सम्बन्धमें सब प्रान्तोंको पंजाबका अनुकरण करना चाहिए ।

सबको याद रखना चाहिए कि हर प्रान्तमें अलग-अलग चन्दा इकट्ठा करना है और हर प्रान्तमें जो रकम इकट्ठी की जाये उसका पच्चीस प्रतिशत कांग्रेसकी महा- समितिको दिया जाना है। कोई भी ऐसे लोगोंको चन्दा न दे जिनकी नियुक्ति स्थानीय कांग्रेस समिति द्वारा न की गई हो। इस सादे नियमका पालन करने से हम अनेक दुःखोंसे बच सकते हैं।

जबतक यह चन्दा जारी रहे तबतक जहाँतक बन सके किसी और चन्देकी माँग नहीं की जानी चाहिए।

[ गुजरातीसे ]

नवजीवन, २०-३-१९२१