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२३३. कांग्रेसका संविधान

कांग्रेसके संविधानका पूरा-पूरा अर्थ समझ लेना जरूरी है। उस संविधानकी[१] रचना स्वराज्य समयपर प्राप्त करने के उद्देश्य से की गई है। उसके अनुसार यदि हम प्रत्येक गाँव में कांग्रेस समिति बना सकें और उसके रजिस्टरमें वहाँके २१ वर्षके प्रत्येक स्त्री पुरुषका नाम दर्ज कर सकें तो उसका अर्थ यह होगा कि सरकारकी ही भाँति प्रत्येक गाँव में कांग्रेसकी सत्ता भी चलती है। सरकारकी सत्ताका आधार तो जोर- जबरदस्ती है। तब यदि वहाँ लोगोंकी स्वेच्छासे एक अन्य सत्ताका शासन चलना आरम्भ हो जाये तो लोक-प्रतिकूल सरकारी सत्ता एक पलके लिए भी नहीं टिक सकती। इसलिए यदि हम कांग्रेसके संविधानको पूर्णतया व्यापक कर सकें तो समझ लीजिए कि उसी दिन स्वराज्यकी स्थापना हो जायेगी। इसमें हमारी योजना-शक्तिकी परीक्षा हो जाती है। यदि हममें इतनी शक्ति भी न हो तो हमें स्वराज्य प्राप्त करनेका क्या अधिकार है ?

कांग्रेसका संविधान निराशावादियोंको जवाब है। वे ऐसा मानते हैं कि हममें योजना-शक्ति नहीं है और उसे प्राप्त करने में हमें वर्षों लगेंगे। यह बतानेके लिए कि उनकी यह निराशा निराधार है, कांग्रेसने आशावादीके हाथ में एक शस्त्र दिया है। इस योजनाको पूरा करनेके लिए किसी त्यागकी जरूरत नहीं है, सिर्फ हममें सामान्य प्रामाणिकता और प्रयत्नकी जरूरत है। इसमें बहुत ज्यादा पैसेकी भी जरूरत नहीं और जितने पैसोंकी जरूरत है उतने तो हम [ प्रति सदस्य ] चार आनेके चन्देसे ही प्राप्त कर सकते हैं। जिस तरह ३० जूनतक हममें एक करोड़ रुपया इकट्ठा करनेकी शक्ति होनी चाहिए उसी तरह हममें कांग्रेसके एक करोड़ सदस्य बनानेकी शक्ति भी होनी चाहिए। एक करोड़ अर्थात् आबादीका तीसवाँ भाग । गुजरातकी आबादी अनुमानतः ९६ लाख है। अतएव हमारे रजिस्टरमें ३० जूनसे पहले-पहले कमसे-कम तीन लाख सदस्योंके नाम दर्ज हो जाने चाहिए। हमने २८ फरवरीतक २५ हजार नाम दर्ज किये थे। अपनी गतिको तेज करके ही हम सफलताकी आशा कर सकते हैं। सत्याग्रह सप्ताह में खूब मेहनत करके सदस्योंकी संख्या और चंदेकी रकम बढ़ाकर, इतना सामान्य काम तो हमें कर ही लेना चाहिए।

[ गुजरातीसे ]

नवजीवन, २०-३-१९२१


  1. १. देखिए पृष्ठ १९४-२०२ ।