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पत्र : सी० एफ० एन्ड्रयूजको


आगमनके पहले ही इस उद्देश्यसे किया जा रहा कि उनके लिए ऐसा वातावरण बना दिया जाये कि जिसमें यदि वे मजबूत दिल और खरी न्यायपरता लेकर न आये तो उनके लिए कोई वास्तविक सेवा करना असम्भव हो जाये।

आज मेरा पवित्र दिन[१] है और मैं तुम्हें कुछ पंक्तियाँ लिखे बिना नहीं रह सकता। मैंने किसी अखबारमें पढ़ा था कि तुम्हें फिर इन्फ्लुएंजा हो गया है। मुझे आशा है कि तुम अब कुछ अच्छे हो। मुझे कटकके पतेपर तारसे अपनी तबीयतका हाल भेजना। मैं उड़ीसामें ६ दिन रहूँगा।

मुझे तुमसे दुःखके साथ कहना पड़ता है कि शायद लालचन्द[२] भरोसेका आदमी नहीं था। महादेवने मुझे बताया और मुझे उसकी जाँचकी सचाईमें जरा भी सन्देह नहीं कि लालचन्दने बहुत-सा रुपया गबन किया है। मैंने उससे सफाई माँगी है। मुझे अभी उसका कोई उत्तर नहीं मिला है। वह महादेवके साथ बड़ी बुरी तरह पेश आया। वह अफीमके सम्बन्धमें भेजा गया तुम्हारा लेख वापस नहीं देना चाहता और कहता है कि वह 'यंग इंडिया' के सम्पादकको नहीं, स्वयं उसको भेजा गया था। मैं इस पत्रके द्वारा तुम्हें सावधान करता हूँ कि उसपर विश्वास मत करना । उसे तुमसे या किसी भी अधिकृत व्यक्तिसे कोई चीज मिल जाये, तो वह उससे रुपया कमा सकता है।

ऐसी बातोंका पता चलनेपर मुझे दुःख होता है और कभी-कभी निराशा भी । यदि हमारे साधन निर्दोष न हों तो हम असहयोगके संघर्ष में अधिक प्रगति नहीं कर सकते। मैं तो समझता था कि लालचन्द बिलकुल ईमानदार और सन्देहसे परे है।

मैं ३१ को या ३० को बेजवाड़ा पहुँचूँगा और आन्ध्र प्रदेशमें ५ दिन रहूँगा ।

सस्नेह,

तुम्हारा,
मोहन

अंग्रेजी पत्र (जी० एन० ९६१) की फोटो-नकलसे।


  1. १. २१ मार्च, १९२१ को सोमवार होनेसे गांधीजीका मौन-वार था ।
  2. २. इनको कुछ समय पहले यंग इंडिया के सम्पादकीय विभागसे हटाया गया था। देखिए "पत्र : लालचन्दको ”, २९-१-१९२१ ।