पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 19.pdf/४९९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४७१
टिप्पणियाँ

यह सब सुन कर लड़का उलझनमें पड़ गया।

मैंने अपनी बात जारी रखते हुए कहा, मान लो हमारा देश धनसम्पन्न होनेके लिए अधर्मी हो जाये, विदेशियोंका शोषण करे, मादक द्रव्योंका धन्धा करे, अपने व्यापारका विस्तार करने के लिए युद्ध करता फिरे, तथा अपनी शक्ति और प्रतिष्ठाको कायम रखने के लिए छल-कपटका आश्रय ले, तो उस हालतमें हम ईश्वर और देश, दोनोंके प्रति एक साथ निष्ठावान् कैसे रह सकते हैं? क्या तब हमें ईश्वरके लिए देशको छोड़ नहीं देना चाहिए ? अतः मेरा सुझाव है कि तुम्हें केवल भगवानके प्रति ही ईमानदार और निष्ठावान् होना चाहिए; उसके साथ उसी अर्थमें तुम किसी दूसरेके प्रति निष्ठा नहीं रख सकते।

उस लड़केके अनेक साथी इस बातचीत में गहरी दिलचस्पी ले रहे थे। उनका सरदार भी वहाँ आ गया। मैंने उसे भी अपनी बात बताई और कहा कि आप जिन बड़ी उम्रके नवयुवकोंका मार्गदर्शन कर रहे हैं, कष्ट करके उनमें जिज्ञासाकी प्रवृत्ति जगाइए। यह रोचक विषय समाप्त ही हुआ था कि गाड़ी स्टेशनसे रवाना हो गई। मुझे उन शानदार लड़कोंके लिए बड़ा दुःख हुआ और मुझे असहयोग आन्दो- लनका गम्भीर अर्थ और अच्छी तरह समझमें आया। मनुष्य के लिए सर्वमान्य धर्म बस एक ही हो सकता है; वह है ईश्वरके प्रति निष्ठा । उसमें राजाके प्रति, देशके प्रति और मानवताके प्रति निष्ठाके लिए भी स्थान है, बशर्ते कि ये निष्ठाएँ उस परमधर्मसे असंगत न हों। किन्तु उसी प्रकार बहुधा उसमें इन निष्ठाओंके लिए स्थान नहीं भी होगा । आशा है, हमारे देशके नवयुवक और उनके शिक्षक अपने सिद्धान्त और मान्यतापर फिरसे विचार करेंगे और जहाँ उन्हें अपनी भूल दिखाई देगी वहाँ उसे सुधार लेंगे। यह बात कोई मामूली बात नहीं है कि अपरिपक्व मस्तिष्कवाले लड़कोंके सामने ऐसे सिद्धान्त रखे जाते हैं जो जाँचकी आंच नहीं सह सकते ।

सत्याग्रह, सविनय अवज्ञा, निष्क्रिय प्रतिरोध, असहयोग

राष्ट्रीय शुद्धीकरणके इस महान् आन्दोलनके सिलसिलेमें अकसर तरह-तरह के विषयोंपर बहुत ही पेचीदे प्रश्न उठते रहे और मुझे उनका जवाब देना पड़ा है। कालेज में पढ़ने वाले असहयोगी विद्यार्थियोंकी एक टोलीने मुझसे इन शब्दोंकी परिभाषा करने के लिए कहा, जिनका मैंने इस टिप्पणीके शीर्षकके लिए उपयोग किया है। और, आज जब इतना कुछ हो चुका है तब भी मुझसे बड़ी गम्भीरतापूर्वक पूछा गया कि क्या सत्याग्रहम कभी-कभी हिंसा द्वारा प्रतिरोधकी आवश्यकता नहीं पड़ती ? उदाहरणके लिए, हम उस स्थितिको ले सकते हैं जब किसी बहनकी इज्जतपर कोई दुराचारी व्यक्ति हाथ डालना चाहे। मैंने कहा कि उस स्थितिमें, उत्तेजित या क्षुब्ध हुए बिना मुसीबत में पड़ी उस बहन और उस दुराचारीके बीच खड़े होकर मृत्युका सामना करना उसके बचावकी पूरी जिम्मेदारी निभा देना है। मैंने कहा कि बचावका यह अभिनव तरीका, बहुत सम्भव है, उस दुराचारीकी कामवासनाको समाप्त कर देगा, और वह उस निर्दोष अबलापर बलात्कार नहीं करना चाहेगा, तथा शर्मके मारे उसके पाससे भाग जाना चाहेगा। और यदि उसने ऐसा नहीं किया, तो अपने भाईके व्यक्ति-