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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


गत शौर्यका यह कार्य इस बहनके हृदय में भी बलका संचार करेगा और वह उसी बहादुरीसे अपना बचाव करती हुई कुछ समय के लिए पशु बन गये उस व्यक्तिकी कामवासनाका प्रतिरोध करेगी। और मैंने अपनी समझमें यह कहकर अपनी दलीलको अकाट्य बना दिया कि यदि सारे बचावके बावजूद अनहोनी बात घटित ही हो जाये और वह आततायी अपनी शारीरिक शक्तिसे उस बेचारीको विवश कर दे तो यह बात उस स्त्रीके लिए लज्जाजनक नहीं होगी, बल्कि स्वयं वह स्त्री और उसका भाई, जो उसके सतीत्वको बचाने के प्रयत्नमें मर गया, दोनोंका मुँह ईश्वरके सामने उज्ज्वल रहेगा। मैं यह दावा नहीं करता कि मेरे तर्कसे मेरे श्रोताओंको तसल्ली और इतमी- नान हो गया, और न यही मानता हूँ कि पाठकोंको ही हो जायेगा। मैं जानता हूँ कि यह संसार जैसा चलता आया है, चलता रहेगा। किन्तु आत्मनिरीक्षणकी इस घड़ी में अहिंसा के इस शक्तिशाली आन्दोलनके गूढार्थोको समझना तथा उनका अभि- मूल्यन करना अच्छा होगा। सभी धर्मोने उच्चत्तम आदर्शोंपर जोर दिया है, किन्तु सभीने मानवीय कमजोरियोंको देखते हुए उससे किंचित विचलित होनेकी न्यूनाधिक छूट दी है।

अब मैं उपर्युक्त विभिन्न शब्दोंकी मैंने जो व्याख्या प्रस्तुत की है, वह संक्षेपमें बताता हूँ। ठीक-ठीक और नपी-तुली परिभाषा देना मेरी शक्ति के बाहर है। तो, सत्याग्रहका शब्दार्थ है सत्यका आग्रह रखना और इसलिए उसका अर्थ होगा सत्यबल। सत्य है आत्मा । अतः उसे आत्मबल कहा जाता है। वह हिंसाके प्रयोगका निषेध करता है, क्योंकि मनुष्य सम्पूर्ण सत्यको जानने में असमर्थ है, और इसलिए दण्ड देनेका अधिकारी नहीं है। यह शब्द दक्षिण आफ्रिकामें गढ़ा गया था।[१] उसका उद्देश्य दक्षिण आफ्रिकाके भारतीयोंके अहिंसात्मक प्रतिरोध तथा उसके सम- कालीन मताधिकारके लिए आन्दोलन करनेवाली स्त्रियों अथवा अन्य लोगोंके निष्क्रिय प्रतिरोधके बीच अन्तर स्पष्ट करना था। उसकी कल्पना कमजोरोंके अस्त्रके रूपमें नहीं की गई थी ।

निष्क्रिय प्रतिरोध (पैसिव रेजिस्टेंस) शब्दोंका प्रयोग अंग्रेजीके परम्परागत अर्थमें होता है और उससे मताविकार आन्दोलन तथा "नॉन-कन्फमिस्टों के प्रतिरोध- का बोध होता है। निष्क्रिय प्रतिरोधकी कल्पना कमजोरके अस्त्रके रूपमें की गई है और इसे उन्हींका अस्त्र माना जाता है। यद्यपि वह हिंसासे बचता है, क्योंकि अश क्तोंके लिए हिंसाका रास्ता खुला नहीं है, तथापि यदि किसी निष्क्रिय प्रतिरोधीकी रायमें किसी अवसरपर हिंसा आवश्यक हो तो वह उसके प्रयोगका निषेध नहीं करता। जो भी हो, वह सशस्त्र प्रतिरोधसे सदा भिन्न माना गया है, और उसका प्रयोग किसी समय ईसाई बलिदानियोंतक ही सीमित था ।

सविनय अवज्ञा (सिविल डिसओबिडिएंस) अनैतिक वैधानिक अधिनियमोंका सविनय उल्लंघन है। यह शब्द-पद 'सिविल डिसओबिडिएंस' यानी सविनय अवज्ञा, जहाँतक मैं जानता हूँ, थोरोन दास-प्रथा-पोषक राज्यके कानूनोंका स्वयं वे जो विरोध

  1. १. सन् १९०८ में, देखिए खण्ड ८, पृष्ठ १२६-२७ ।