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सत्याग्रह सप्ताह

कर रहे थे, उसीका बोध कराने के लिए गढ़ा था। वे सविनय अवज्ञापर एक श्रेष्ठ प्रबन्ध[१] भी लिख गये हैं। किन्तु थोरो कदाचित् अहिंसाके सोलहों आना समर्थक नहीं थे। साथ ही, थोरोने, शायद वैधानिक नियम-भंगको राजस्व-नियमके उल्लंघन, अर्थात्, कर-अदायगी न करनेतक ही सीमित रखा। किन्तु, १९१९ में प्रयुक्त सविनय अवज्ञामें किसी भी संविहित तथा अनैतिक नियमका उल्लंघन शामिल था। इसका मतलब था प्रतिरोधी द्वारा कानूनके बंधनोंको विनयपूर्वक, अर्थात् अहिंसक ढंगसे अस्वीकार कर देना। वह कानून-भंगके लिए विहित दण्डको आमन्त्रित करता था, और हँसी-खुशी कारावास भोगता था। वह सत्याग्रहकी एक शाखा है।


असहयोगका अर्थ मुख्यतः होता है, ऐसे राज्यको, जो असहयोगीकी दृष्टिसे भ्रष्ट हो गया है, सहयोग देनेसे हाथ खींच लेना; इसमें ऊपर वर्णित उग्र ढंगकी सविनय अवज्ञाका निषेध है। असहयोगकी प्रकृति ही ऐसी है कि इसका मार्ग समझदार बच्चोंके लिए भी खुला हुआ है और जनसाधारण मजे में इसका आचरण कर सकता है। सविनय अवज्ञाकी पहली शर्त यह है कि सविनय अवज्ञा करनेवाले व्यक्तिको दण्डके भयके कारण नहीं, बल्कि स्वेच्छासे कानूनकी आज्ञाका पालन करनेकी आदत हो । अतः उसका व्यवहार बिलकुल अन्तिम उपायके रूपमें ही किया जा सकता है। कमसे-कम प्रारम्भमें तो उसे कुछ चुनिन्दा लोगोंतक ही सीमित रखना चाहिए | सविनय अवज्ञाके समान, असहयोग भी उस सत्याग्रहको एक शाखा है, जिसमें सत्यकी प्रतिष्ठाके हेतु किये गये सभी प्रकारके अहिंसात्मक प्रतिरोध शामिल हैं।

[ अंग्रेजीसे ]

यंग इंडिया, २३-३-१९२१

२३८. सत्याग्रह सप्ताह

अप्रैलकी ६ और १३ तारीख अब बिलकुल निकट आ पहुँची हैं। ६ अप्रैलको[२] भारतमें एकता और जागृतिके दर्शन हुए थे। १३ को वह मनहूस रविवार पड़ता था, जब एक सद्य: जागृत राष्ट्रकी आत्माको कुचल डालनेका शैतानी प्रयत्न किया गया था। भारतने गत वर्ष यथोचित रीतिसे इन दोनों दिनोंकी वार्षिकी मनाई और ६ अप्रैलसे आरम्भ होनेवाले पूरे सप्ताहका उपयोग लोगोंने इस संकल्पको दोहरानेके लिए किया कि वे राष्ट्रके लिए जो-जो बलिदान देना आवश्यक होगा, देंगे। आशा है, आगामी अप्रैल हमें महत्तर आत्म-बलिदानके लिए प्रस्तुत पायेगा। हर तरहसे उसका कारण और अवसर भी मौजूद है। पिछले साल हमने केवल निर्दोष व्यक्तियोंके रक्तपातसे पावन हुई भूमिका क्रय-मूल्य चुकाने के लिए चन्दा एकत्र करनेपर ही अपना ध्यान केन्द्रित किया

  1. १. गांधीजी द्वारा प्रस्तुत इस प्रबन्धके संक्षिप्त रूपके लिए, देखिए खण्ड ७, पृष्ठ २२०-२२ तथा २३१-३३ ।
  2. २. १९१९ ।