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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


था।[१] वह एक आवश्यक तथा पवित्र कृत्य था। किन्तु उसके बादसे और भी बड़ी-बड़ी बातें हुई है। राष्ट्रने खिलाफतके तथा पंजाबके अन्यायोंका निवारण करने और स्वराज्य स्थापित करनेका अपना निश्चय दृढ़तापूर्वक घोषित किया, तथा फिर उसे दुहराता है। इसके बाद दिसम्बर अधिवेशनमें कांग्रेसने और भी आगे बढ़कर एक सालके भीतर स्वराज्य प्राप्त करनेका अपना इरादा भी घोषित कर दिया है।

अतः अब हम इस दिशा में और अधिक राष्ट्रीय प्रयास करनेका संकल्प करें। स्कूलों और अदालतोंके सम्बन्धमें आन्दोलन जारी है। अब इस सम्बन्धमें उन लोगोंको छोड़कर जिन्होंने शिक्षा संस्थाओं अथवा न्यायालयोंका त्याग कर दिया है, और किसीको किसी विशेष प्रयत्नकी आवश्यकता नहीं है। उन्हें आत्मनिरीक्षण करना चाहिए और यह समझने की कोशिश करनी चाहिए कि वे अपने समयका कैसा उपयोग कर रहे हैं। किन्तु छ: ऐसी बातें हैं, जिनके सम्बन्धमें निश्चय ही हमें अत्यन्त विशिष्ट प्रयत्न करनेकी आवश्यकता है।

पहली बात यह है कि हमें अपने ऊपर और अधिक नियन्त्रण प्राप्त करना चाहिए, तथा पूर्ण शान्ति और सद्भावनाका वातावरण बनाना चाहिए। हमें बिना विचारे बोले गये प्रत्येक कठोर वचनके लिए अथवा किसीके प्रति किये गये कठोर व्यवहारके लिए क्षमायाचना करनी चाहिए।

दूसरे, हमें अपने हृदयको और भी अधिक स्वच्छ करना चाहिए। हमें, हिन्दुओं और मुसलमानोंको परस्पर एक-दूसरेकी नीयतोंपर सन्देह करना बन्द कर देना चाहिए। हमें यह विश्वास होना चाहिए कि हम दोनों एक-दूसरेका बुरा कर ही नहीं सकते।

तीसरे, हम हिन्दुओंको चाहिए कि हम किसीको भी अस्वच्छ, क्षुद्र अथवा अपनेसे नीच न कहें अतः 'परिया'[२] लोगोंको अस्पृश्य समझना अवश्य बन्द कर देना चाहिए। किसी भी मनुष्यको अछूत मानना पाप समझना चाहिए।

ये तीन बातें आन्तरिक परिवर्तनकी बातें हैं, और इनके परिणाम हमारे दैनिक जीवनके व्यवहारमें देखे जायेंगे।

चौथी बात है मद्यपानका अभिशाप । यह हर्षकी बात है कि लगता है, भारतने स्वेच्छा से अपने-आप इस अभिशापसे मुक्त होनेका निश्चय कर लिया है। इस सप्ताह- में विनयपूर्वक प्रार्थना करके मद्य-विक्रेताओंको अपने-अपने लाइसेंस वापस कर देनेके लिए और इन दुकानोंके नियमित ग्राहकोंको अपनी आदत छोड़ देनेके लिए प्रेरित करनेका चरम प्रयत्न किया जाना चाहिए। प्रत्येक जातिको मालूम है कि यह दोष उसके किन सदस्यों में है तथा उनके साथ वह दूसरोंकी अपेक्षा अधिक सफलतासे निबट सकती है। किन्तु मैंने अहमदाबादकी महिलाओंको सुझाया है कि वे मद्य-निषेध-टोलियाँ संगठित करें, और शराब बेचनेवालों और पीनेवालोंके पास जाकर उन्हें समझायें। कुछ भी हो, अपने लक्ष्यकी प्राप्तिके लिए शारीरिक शक्तिका उपयोग नहीं करना चाहिए। शान्ति के साथ, संकल्पपूर्वक समझा-बुझाकर राजी करनेसे इस अभियानमें अवश्य सफलता मिलेगी।

  1. १. स्पष्ट हो तात्पर्य जलियांवाला बाग स्मारक कोषसे है; देखिए खण्ड १७, पृष्ठ ३३-३४; ३३५ ।
  2. २. दक्षिण भारतकी एक जाति विशेष जिसे अस्पृश्य माना जाता था ।