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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


आप मेरे देशभाई तो हैं ही। इसके अलावा भी, मैं आपसे कई पवित्र बन्धनोंसे बँधा हुआ हूँ। दादाभाई[१] मुझे प्रेरणा देनेवाले सबसे पहले देशभक्त थे। जब मैं अन्य किसी भी नेताको नहीं जानता था, तभी वे मेरे पथ-प्रदर्शक और सहायक थे। अपनी किशो- रावस्था में ही मुझे एक परिचय-पत्रके साथ उनसे मिलनेका सौभाग्य प्राप्त हुआ था ।[२] और सन् १८९६ में जिस व्यक्तिने मेरी रहनुमाई की, मुझे काम करनेका तरीका बताया, वह थे बम्बईके बेताजके बादशाह,[३], जो अब नहीं रहे। जब मैं १८९२ में राजनीतिक एजेंट से जूझनेको आमादा हो गया था[४], तब उन्होंने ही मेरी जवानीके जोशको रोका था और मुझे सार्वजनिक जीवन में अहिंसाका प्रथम व्यावहारिक पाठ पढ़ाया था। उन्होंने मुझे सिखाया कि अगर मैं भारतकी सेवा करना चाहता हूँ तो मुझे व्यक्तिगत अन्यायोंपर नाराज नहीं होना चाहिए। जब मैं दक्षिण आफ्रिकामें था, उन दिनों भी डर्बनके एक पारसी व्यापारी, रुस्तमजी घोरखोग, मेरे अत्यन्त सम्माननीय मुवक्किलों और मित्रोंमें से थे । सार्वजनिक कार्योंके लिए वे दिल खोलकर धन देते थे, और मेरे साथ जेल जानेवालोंमें से वे और उनका लड़का सर्वप्रथम थे। मुझपर जब वहाँ मार पड़ी थी[५] तब उन्होंने ही मुझे शरण दी थी, और अब भी वे स्वराज्य आन्दोलन में काफी दिलचस्पी रख रहे हैं; उन्होंने अभी-अभी तदर्थ ४०,००० रुपयेका दान दिया है।[६] मेरी नम्र सम्मतिमें, भारतकी महिलाओं में भी अग्रणी एक पारसी महिला ही हैं।[७] वे गौके समान सुशील हैं और उनके हृदय में समस्त मानवताके लिए करुणा है। उनकी मैत्री प्राप्त करना जीवन- की अन्यतम सौभाग्यपूर्ण बातों से है। वैसे तो मैं ऐसी पुनीत स्मृतियोंका वर्णन करते ही जाना चाहूँगा, लेकिन इस दृष्टि से आपको काफी बातें बता दी हैं कि आप इस पत्रका मंशा समझ सकें और उसे हृदयंगम कर सकें।

आप लोग बहुत ही सावधानी बरत कर चलनेवाली जातिके सदस्य हैं। आपमें पूरी एकता और संगठन है, और अगर आप लोग इस बातपर आग्रह रखते हैं कि किसी आन्दोलनमें शामिल होने से पहले आपको उसकी स्थिरता और नैतिकताके पर्याप्त प्रमाण मिलने चाहिए तो यह ठीक ही है। लेकिन, अब आपके जरूरतसे ज्यादा सावधानी बरतने- में खतरा है, और व्यापारके क्षेत्र में आपकी सफलता आपके असंख्य देशभाइयोंकी आव- श्यकताओं और आकांक्षाओंकी ओरसे आपकी आँखें बन्द कर दे सकती हैं। महान्




  1. १. दादाभाई नौरोजी ।
  2. २. यह बात १८८८ की है, जब गांधीजी वकालत पढ़नेके लिए इंग्लैंड गये थे ।
  3. ३. सर फीरोजशाह मेहता (१८४५-१९१५); बैरिस्टरीकी परीक्षा पास करनेवाले पहले पारसी भारतीय, सन् १८६८; नये बम्बई कॉर्पोरेशनके सदस्य १८७२-१९१५; ३० सालतक बम्बई विधान परिषद के सदस्य; १८९३ में शाही विधान परिषद के सदस्य; कांग्रेसके जन्मसे ही उससे सम्बद्ध; १८९० और १९०८ में कांग्रेसके अध्यक्ष |
  4. ४. यह बात राजकोटकी है, जब गांधीजीने अपने भाईकी ओरसे पोलिटिकल एजेंटसे बातचीत करनेकी कोशिश की थी और उन्हें फटकार दिया गया था। इस घटना के विस्तृत विवरणके लिए देखिए आत्मकथा, भाग २ अध्याय ४ ।
  5. ५. डर्बनमें, १३-१-१८९७ को; देखिए खण्ड २ ।
  6. ६. देखिए "टिप्पणियाँ ", २६-१२-१९२०, पाद-टिप्पणी २ ।
  7. ७. तात्पर्य शायद श्रीमती जाईजो पेटिटसे है ।