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२४०. खिलाफत

सेवर्सकी सन्धिमें जिस परिवर्तनकी बात सोची जा रही है, उससे भारतीय मुसल- मान सन्तुष्ट नहीं हो सकते; और इतना कहना काफी कह देना है। ब्रिटेनको सिर्फ टर्कीको ही नहीं भारतको भी सन्तुष्ट करता है। मेरी नम्र सम्मतिमें, भारतके मुसल- मानोंकी माँगें स्वीकार कर ली जायें तो टर्कीकी माँगें स्वीकार की जाती हैं या नहीं, इससे ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा। इसके दो कारण हैं। खिलाफत एक आदर्श है और जब कोई व्यक्ति किसी आदर्शको लेकर चलता है तो उसका रास्ता दुनियाकी कोई ताकत नहीं रोक सकेगी। मुसलमान उस आदर्शका प्रतिनिधित्व करते हैं और समस्त भारतके सर्वसाधारणका समर्थन उन्हें प्राप्त है।

यह कहना गलत है कि मुसलमान सिर्फ टर्कीके लिए लड़ रहे हैं। अगर टर्की गलत रास्तेपर जाये, मान लीजिए, वह यह बेतुकी माँग रखे कि उसे फिर वही स्थिति प्रदान की जाये जो महाप्रतापी सुलेमानके[१] शासन कालमें उसे प्राप्त थी तो भारतके मुसलमान आज ही उसका साथ छोड़ देंगे। किन्तु उसी तरह, मुसलमान महज इस कारणसे 'कुरान' के समादेशोंपर आधारित कोई माँग छोड़ नहीं दे सकते कि असहाय और कमजोर टर्कीमें उसपर डटे रहने की सामर्थ्य नहीं है।

टर्कीकी लौकिक सत्ताको कायम रखने के लिए तो हर सच्चा मुसलमान प्रयत्न करेगा ही, लेकिन इसका खयाल रखना उसका कर्त्तव्य है कि "अरब द्वीप" पर, जिसमें मेसोपोटामिया, सीरिया और फिलिस्तीन भी शामिल हैं, स्पष्ट रूपसे मुसलमानोंका नियन्त्रण रहे और उनपर धार्मिक प्रभुसत्ता खलीफाकी रहे, चाहे फिलहाल खलीफा कोई भी हो । अन्य शर्तें चाहे जितनी अच्छी हों, मुसलमानोंको किसी तरह सन्तुष्ट नहीं कर सकतीं। इस्लामके पाक स्थानोंपर किसी प्रकारका गैर-मुस्लिम प्रभाव, चाहे वह प्रत्यक्ष हो अथवा अप्रत्यक्ष, उन्हें बरदाश्त नहीं होगा।

इसलिए इस प्रश्नका सबसे उलझा हुआ पहलू फिलिस्तीन है। ब्रिटेनने फिलिस्तीनको फिरसे यहूदियोंका घर बनानेका आन्दोलन करनेवाले यहूदीवादियों (जिऑनिस्टों) से वादे कर रखे हैं। स्वभावतः यहूदीवादी इस स्थानसे एक पवित्र भावनासे बंधे हुए हैं। कहते हैं, जबतक फिलिस्तीनपर यहूदियोंका प्रभुत्व नहीं हो जाता तबतक वे बेघर- बार, खानाबदोश ही बने रहेंगे। यहाँ मैं इस मान्यतामें निहित सिद्धान्तके गुण-दोषका विवेचन नहीं करना चाहता। मुझे तो कुल इतना ही कहना है कि छल-कपटसे और नैतिकताके बन्धनोंको तोड़कर फिलिस्तीन यहूदियोंके हाथों में नहीं दिया जा सकता । फिलिस्तीन के सवालको लेकर तो यह लड़ाई नहीं लड़ी गई थी। ब्रिटिश सरकार एक भी मुसलमान सिपाहीसे यह कहनेका साहस नहीं कर सकती थी कि वह फिलिस्तीनको अपने मुसलमान भाइयोंके नियन्त्रणसे छीनकर यहूदियोंको दे देगी। फिलिस्तीन यहूदियोंका

  1. १. सुलेमान तृतीय, जिसकी तलवारकी धाक पूर्वमें फारससे लेकर पश्चिममें आस्ट्रियातक जमी हुई थी।