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भाषण : कटकमें मारवाड़ियों और गुजरातियोंकी सभामें


तक कांग्रेसके ३ लाख सदस्य बनायें, एक लाख चरखे लोगोंको दें और ३ लाख रुपये इकट्ठा करें। उड़ीसा इतना कर ले, तो भारतको स्वराज्य दिलानेमें उसका अपना हिस्सा पूरा हो जायेगा। उन्होंने श्रोताओंसे अपील की कि वे आचार, व्यवहार और स्वभावमें संयम और आत्म-अनुशासन रखें। उन्होंने कहा कि जो लोग आत्म-बलिदानके लिए तैयार हैं वे ईश्वरके सिवा किसी मनुष्यसे भय नहीं कर सकते। स्वराज्य हमारा लक्ष्य है और वह हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है। हमें स्वराज्य प्राप्त करनेके लिए राज- नैतिक राक्षसका वध करना है। चूंकि हमारे पास तलवार नहीं है, और यदि होती भी तो वह हमारे लिए कामकी न होती, इसलिए असहयोगके मामलेमें हमारा मुख्य सिद्धान्त अहिंसाका होना चाहिए। उन्होंने उड़ीसाकी अवनत दशाका उल्लेख करते हुए कहा कि यद्यपि उड़ीसामें अंग्रेजी जाननेवाले लोग अपेक्षाकृत पिछड़े हुए हैं, किन्तु जन- साधारण कदापि पिछड़े हुए नहीं हैं; जनसाधारण आगे बढ़े हुए हैं। में उड़ीसाके अकाल-पीड़ित लोगोंसे भी, जो-कुछ पैसा-पाई मिलेगा इकट्ठा करनेका प्रयत्न करूंगा। उड़िया लोगों को अपना समय प्रायश्चित्त करनेमें लगाना चाहिए। अन्तमें, श्री गांधीने लोकमान्य तिलक स्मारक-कोषके लिए धनकी अपील की और कहा कि उड़िया लोगोंको, जो गंजाम, कंटाई, सिंहभूम और मध्यप्रान्तके उड़ियाभाषी क्षेत्रकी माँग करते हैं, अपने प्रदेशका संगठन करके और धन इकट्ठा करके यह दिखाना होगा कि वे अन्य प्रान्तोंके साथ मिलकर उड़ीसाके लिए स्वराज्य प्राप्त करनेमें और अपने प्रान्तका शासन चलानेमें समर्थ हैं।

[ अंग्रेजीसे ]

अमृतबाजार पत्रिका, ३१-३-१९२१

२४३. भाषण : कटकमें मारवाड़ियों और गुजरातियोंको सभामें

२३ मार्च, १९२१

[ गांधीजीने] उसी दिन शामके आठ बजे मारवाड़ियों और गुजरातियोंकी सभामें भाषण दिया और चन्देकी अपील की। उन्होंने आगे कहा, चूंकि आप लोग उड़ीसामें ही व्यापार करते हैं और उड़िया लोगोंसे काफी मुनाफा कमाते हैं इसलिए आपको चन्दा इकट्ठा करनेमें हमारी सहायता करनी चाहिए। उन्होंने प्रान्तोंके बीच पारस्परिक सहानुभूति और सद्भावनाकी आवश्यकतापर जोर दिया और श्रोताओंसे विदेशी वस्त्रोंका बहिष्कार करने तथा अपने ग्राहकोंके जरिये चरखेको और भी लोकप्रिय बनानेका अनु- रोध किया। उन्होंने कहा, मैं चाहता हूँ कि आप दूसरे शहरोंमें रहनेवाले अपने जाति भाइयोंका अनुकरण करें और उनकी तरह अपने अधिवासके प्रान्तके कोषमें खुले हाथों चन्दा दें।

[ अंग्रेजी से ]

अमृतबाजार पत्रिका, ३१-३-१९२१

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