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बहनने यदि पहल की तो अन्य बहनें भी इस कार्यको हाथ में ले लेंगी, ऐसी मेरी दृढ़ मान्यता है।

लेकिन शिक्षाका क्या होगा ?

लेकिन कुछ लोग कहते हैं कि अगर सत्रह करोड़ रुपयेकी इस आयपर पानी फिर जाये तो हमारी शिक्षा के लिए रुपया कहाँसे आयेगा। यह सरकारका कहना है और हम भी बिना विचारे इसे मान लेते हैं। क्या शराबकी कमाईसे ही हमारी पढ़ाई होती है ? यदि यह बात सच हो तो मैं यही कहूँगा कि ऐसी स्थिति में सरकारी शिक्षाका त्याग करने के लिए हमारे पास दो कारण हो जाते हैं। एक कारण तो सरकारकी सामान्य राक्षसी नीति और दूसरा पापकी कमाईसे मिलनेवाली शिक्षा। क्या हम अपने बच्चोंको शराब व अफीमकी आयसे पढ़ाकर पवित्र शिक्षा दे सकेंगे? हमें जैसा धन मिलेगा वैसा ही उसका फल भी होगा। शराबकी दुकानवाले हमारे बच्चोंको शिक्षा देंगे तो क्या हम किसी भी दिन उनकी दुकानोंको बन्द करवा सकेंगे ?

सरकार किसलिए शराबसे होनेवाली आयको शिक्षाके खाते में जमा करती है ? जमीनके लगानको शिक्षा खातेके लिए जमा क्यों नहीं करती ? शराबकी कमाईको वह सैनिक खाते में जमा करे ताकि उसके बन्द होनेपर सैन्य शक्ति उतनी ही कम हो जाये। स्वराज्य मिलनेपर हम सेनापर करोड़ों रुपये खर्च करनेवाले नहीं हैं। इसपर होनेवाले खर्च में से सत्रह करोड़ रुपया आसानीसे बचाया जा सकता है। इसलिये शराब और अफीमसे होनेवाली आयके खतम होनेपर हम भयभीत हो ही नहीं सकते।

शिक्षाके साधन

स्वराज्यके अन्तर्गत जो शिक्षा दी जायेगी उसका साधन न तो शराबसे होनेवाली आय होगा, न ही जमीनका लगान। उसका साधन तो सुन्दर चरखा है। यदि प्रत्येक स्कूलमें चरखों और करघोंकी स्थापना हो जाये तो शिक्षाका खर्च किसीके सिरपर न पड़े। और आज तो हम विद्यार्थियोंका सारा समय चरखेको ही देना चाहते हैं। स्वराज्य मिलने के बाद भी विद्यार्थी इस कार्यके लिए कमसे-कम एक घंटा तो देंगे ही। जब स्वराज्यका असर प्रत्येक विभागपर होगा तभी वह सच्चा स्वराज्य कह- लायेगा । आजकी शिक्षा, गुलामोंको शिक्षित करनेके लिए, नौकर बनाने के लिए दी जाती है। स्वराज्यकी शिक्षा बालकोंको आरम्भसे ही स्वावलम्बी बनने के लिए दी जानी चाहिए; फलतः उन्हें कातना और बुनना अवश्यमेव सिखाना चाहिए। इसके उपरान्त वे कोई और धन्धा सीखना चाहें तो भले ही सीखें। लेकिन कातना और बुनना अनिवार्य होना चाहिए। चरखा "दुःखियोंका विश्रामस्थान और गरीबोंकी जीवन डोर है", उसमें जो बरकत है वह अन्य किसी धन्धेमें नहीं है क्योंकि खेतीके बाद एक पूरक धन्धेके रूप में चरखेकी ही प्रवृत्ति व्यापक हो सकती है। सब कोई बढ़ई नहीं होते, न लुहार होते हैं लेकिन सबको कातना तो अवश्य आना चाहिए और सबको राष्ट्रके लिए अथवा अपनी आजीविकामें कुछ वृद्धि करनेके लिए कातना चाहिए। सबको अन्न-वस्त्रकी जरूरत होती है इसीसे चरखा एक व्यापक प्रवृत्तिके