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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

रूपमें चल सकता है। हमारी राष्ट्रीय शिक्षाकी आज ही से उपर्युक्त ढंगसे रचना की जानी चाहिए; नहीं तो स्वराज्य मिलनेपर हममें परस्पर सबसे पहले झगड़ा इसी बातको लेकर होगा। कुछ लोग कहेंगे कि शिक्षाके अन्तर्गत शिल्प नहीं सिखाया जाना चाहिए। इसलिए हमें आजसे ही शिल्पको शिक्षाका एक अंग बना देना चाहिए, जिससे जनमत इतना प्रशिक्षित हो जाये कि बादमें वाद-विवाद करनेकी गुंजाइश ही न रहे।

कर्मयुगका आरम्भ

वादयुग अब बीत गया है, यह बात मुझे सर्वत्र दिखलाई पड़ती है। अभी हममें व्याख्यान सुननेका मोह है, बोलनेवालोंको बोलनेका मोह है तथापि लोग समझ गये हैं कि अब काम करनेकी आवश्यकता है, बोलकर स्वराज्य नहीं प्राप्त किया जा सकता । इस कर्मयुगका लाभ अगर काम करनेवाले लोग नहीं लेंगे तो प्राप्त अवसरको खो बैठेंगे। सरकारने हमारा मुँह बन्द करना शुरू कर दिया है। क्यों न हम अपना मुँह स्वयं ही बन्द कर लें ? हमें बोलकर क्या करना है ? सरकारकी बदगोई करनेमें रस लेनेकी अपेक्षा जो राज्यनीति पापमय हो गई है उसका नाश करनेके साधनोंको ढूंढ़ निकालनके लिए चौबीस घंटे प्रत्यक्ष काममें जुट जायें, क्या यह बात सबसे अधिक आनन्ददायक नहीं है ? सरकार कैसी है, क्या यह बात अभी सिद्ध करनी बाकी है ? अतएव मेरी प्रत्येक वक्ताको खास सलाह है कि वह बोलना बन्द करके सिर्फ कामसे ही ताल्लुक रखे और अगर उससे बोले बिना न रहा जा सके तो वह लोगोंकी मन्दगति, स्वार्थ और लोभके कारण निन्दा करे अथवा जहाँ उनमें शौर्य और स्वार्थत्याग दिखे वहाँ उसकी प्रशंसा करे तथा उन्हें और अधिक काम करनेके लिए प्रेरित करे। हम ऐसी स्थितिको लानेकी चेष्टामें हैं जब सरकार उसकी निन्दा करनेके अपराधमें हमें, सजा नहीं दे सकेगी बल्कि चरखा चलानेको अपराध मानेगी, दारू न पीनेको गुनाह मानेगी। वस्तुतः देखा जाये तो फिलहाल जिस प्रवृत्तिके लिए धरपकड़ हो रही है वह प्रवृत्ति मद्य-निषेधकी है। हम शराब न पियें और न विदेशी वस्त्र पहनें, यह बात सरकारको कदापि पुसा नहीं सकती। सरकारको हमारे बोलनेका नहीं, हमारे बोलनेका जनतापर जो असर हो रहा है, उसका भय है। चरखा चलानेके अपराधके लिए, शराब न पीनेके गुनाहमें जब हम गिरफ्तार होने लगेंगे उस दिन हमारी पूरी विजय होगी, ऐसा समझना चाहिए। सरकारको हम शराबका त्याग और चरखेको स्वीकार करनेकी बातके अलावा गिरफ्तार करनेका दूसरा कोई भी बहाना नहीं देनेवाले हैं। इस काममें हम जितनी तत्परता बरतेंगे उतनी जल्दी हमें स्वराज्य मिलेगा।

सफेद टोपीपर प्रतिबन्ध

मैंने सुना है कि किसी-किसी स्थानपर ऐसा आदेश जारी किया गया है कि सरकारी नौकर सफेद टोपी पहनकर दफ्तरोंमें न आयें। ऐसा अपराध तो मुझे बहुत अच्छा लगता है। रावण-राज्यमें अगर कोई विष्णुकी तसवीरको अपने घरमें रखता था तो वह अपराधी माना जाता था। इस आधुनिक रावण-राज्य में सफेद टोपी