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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


फीजीके एक निवासीसे मुझे हाल ही में वहाँ गये हुए लोगोंके बारेमें पता चला। दक्षिण आफ्रिकी आयोगके सुझाव भी मैंने पढ़ लिये हैं। जबतक भारतमें आमूल सुधार नहीं होते, तबतक हम कहीं भी किसी भी अच्छे परिणामकी आशा नहीं कर सकते । सरकारी अधिकारियों द्वारा शराबबन्दीके आन्दोलनका विरोध देखकर मुझे अत्यधिक क्लेश होता है। मुझे इस सबके पीछे धोखा और छल-कपटके सिवा कुछ नजर नहीं आता ।

सिखोंसे सम्बन्धित पत्र और उसपर तुम्हारी आपत्तिका मैंने जो जवाब दिया है, उसे क्या तुमने देखा है? मुझे लगता है कि उस पत्र में कहीं कोई त्रुटि नहीं है। परन्तु तुम्हारी आगाहीके कारण मैं क्षमा करनेकी बात और भी जोर देकर कह सका।

क्या ही अच्छा होता कि तुम कल उस समय मेरे पास होते जब मैं पुरी जिलेके अकाल-पीड़ित लोगोंसे मिला था | कैसा हृदय विदारक दृश्य था । पर मुझे इसमें सन्देह नहीं कि उनके इस महान् कष्टको सिर्फ चरखा ही दूर कर सकता है।

तुम्हारा,
मोहन

श्री सी० एफ० एन्ड्रयूज
शान्तिनिकेतन,
बोलपुर, ई० इं० रेलवे

अंग्रेजी पत्र (जी० एन० २६०८) की फोटो-नकलसे।

२४८. भाषण : बरहामपुरमें[१]

२९ मार्च, १९२१

गांधीजीने कहा: मैं अंग्रेजीमें लिखा मानपत्र स्वीकार करना नहीं चाहता क्योंकि अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार और राजनयिक सम्बन्धोंका माध्यम होनेके अलावा अंग्रेजीका हमारे राष्ट्रीय जीवनमें कोई स्थान नहीं है। उन्होंने सूरत, नडियाद और अहमदाबाद- की नगरपालिकाओंको आदर्श नगरपालिकाएँ बताया और कहा कि सुसंचालित नगर- पालिकाओंको ही स्वराज्यके बीज बोने हैं, उनका पोषण करता है। सरकारी सहायता और नियंन्त्रणको अस्वीकार करना ही काफी नहीं है। चरखा और हिन्दुस्तानी अपनाये बिना शिक्षाको पूरी तरह राष्ट्रीय रूप नहीं दिया जा सकता। उन्होंने कहा हमें गोख- लेकी श्रेष्ठ परम्पराओंका अनुकरण करना चाहिए। गोखलेका सर्वोत्तम कार्य यह था कि उन्होंने देशकी राजनीतिमें धार्मिकता दाखिल करनेका प्रयत्न किया। हम भी अब राष्ट्रीय जीवनके सभी पहलुओंमें उसी धार्मिक भावनाको लानेका प्रयत्न कर रहे हैं।


  1. १. यह भाषण बरहामपुर नगरपालिका द्वारा दिये गये अभिनन्दन-पत्रके उत्तरमें दिया गया था ।