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कांग्रेसका संविधान


ध्यान केन्द्रित करें। बिना चवन्नी दिये तथा सिद्धान्त स्वीकार किये किसीकी सदस्यता पक्की न मानी जाये। प्रत्येक परिवारके प्रत्येक वयस्क व्यक्तिको [कांग्रेसका ] सदस्य बनाना हमारा लक्ष्य होना चाहिए। हमें यह गर्व कर सकने योग्य होना चाहिए कि हमारी सदस्य-सूचीमें जितने पुरुष हैं, उतनी ही महिलाएँ हैं। हमें यथाशक्ति सभी मुसलमानों, अन्य सभी जातियों, कारीगरों और 'अछूतों' को सदस्यताके रजिस्टरमें नाम लिखानेपर राजी करना चाहिए। तब वह सूची संसार-भरमें मतदाताओंकी सर्वाधिक लोकतन्त्रात्मक सूची होगी। यदि मेरे सुझाव स्वीकृत हों, तो हमें ३० जूनतक निम्न- लिखित काम पूरे करनेपर अपना ध्यान केन्द्रित करना चाहिए:

(१) तिलक-स्वराज्य कोषके लिए १ करोड़ रुपया एकत्र करना ।

(२) कांग्रेसके १ करोड़ सदस्य बनाना।

(३) बीस लाख घरों में चरखा चालू कराना ।


एक करोड़ सदस्योंको भरती करनेकी दृष्टिसे, मेरे हिसाबमें — यदि ५ व्यक्तियोंका परिवार माना जाये, तो कमसे-कम २० लाख घरोंमें हमारे मतका प्रचार हो जायेगा । कार्यकर्त्तागण कांग्रेसी परिवारोंके प्रति परिवारमें एक-एक चरखा रखनेपर तो अवश्य ही राजी कर सकते हैं । इक्कीस प्रान्तोंमें[१] पच्चीस लाख चरखे चलवाना कुछ अधिक नहीं है।

हमें जरूरत से ज्यादा राष्ट्रीय समस्याओं और उनके समाधानके फेरमें पड़कर अपने साधनोंका अपव्यय नहीं करना चाहिए। जो रोगी एक ही समय अनेक उपचारों- का प्रयोग करता है, वह मर जाता है। जो वैद्य अपने रोगीपर एक साथ अनेक उपचारोंका प्रयोग करता है वह अपनी साख खो बैठता है और नीमहकीम कहलाता है। जीवन और उसके सभी कार्यों में एकाग्रता समान रूपसे अनिवार्य है। शक्तियोंका बिखराव हमेशा ही खराब हुआ करता अभीतक हम सब अपनी-अपनी ढपली बजाते रहे हैं, और इस प्रकार हमारी राष्ट्रीय शक्तिका बड़ा ह्रास होता रहा है। इसी सालके भीतर विदेशी कपड़ेका बहिष्कार एक व्यावहारिक सम्भावना है। कांग्रेसके लिए एक कार्यक्षम संगठनका निर्माण करना प्रामाणिक कार्यकर्ताओंके बाएँ हाथका खेल है। एक सुनियोजित ढंगसे एक करोड़ रुपया एकत्र कर लेना हमारे अन्दर आत्मविश्वास उत्पन्न करेगा, और वह हमारी ईमानदारी तथा हमारे संकल्पका भी प्रत्यक्ष प्रमाण होगा।

इस कार्यक्रमका यह अर्थ नहीं है कि असहयोगके अन्य कार्याकलाप बन्द हो जायें । वे जारी रहेंगे; मद्य-पान और अस्पृश्यताका निवारण होना ही चाहिए । शैक्षणिक आन्दोलन निश्चित गतिसे आगे बढ़ रहा । जो नई राष्ट्रीय संस्थाएँ जगह-जगह स्थापित हुई हैं यदि उनकी सुचारु रूपसे व्यवस्था की गई तो वे और आगे बढ़ेंगी और उन विद्यार्थियोंको भी आकर्षित करेंगी जो अभीतक दुविधामें पड़े हैं। वकील लोग भी, जो संस्कारसे ही सदा सतर्क और आगा-पीछा सोचकर चलनेवाले लोग होते हैं, जब वे आन्दोलनको अधिकाधिक प्रगति करते देखेंगे, तो वे भी देशके साथ आ मिलेंगे ।


  1. १. भाषाके आधारपद बनाये गये कांग्रेस-प्रान्त ।