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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


जनता द्वारा कानूनी अदालतोंके बहिष्कारकी प्रगति काफी अच्छी है। इन बातोंमें अब सभीको अपना प्रयत्न केन्द्रित करनेकी आवश्यकता नहीं रही। ये विशिष्ट वर्गोंके लिए हैं। किन्तु ऊपर कही गई मेरी तीनों बातें तो अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं। उन्हें शुरू करना नितान्त आवश्यक हो गया है। इसके बिना यह आन्दोलन, जन-आन्दोलनके रूपमें असफल माना जायेगा।

[ अंग्रेजी से ]

यंग इंडिया, ३०-३-१९२१


२५२. भाषण : विजयनगरम् में[१]

३० मार्च, १९२१

गांधीजीने भाषण प्रारम्भ करते हुए कहा कि अंग्रेजी पढ़ना बिलकुल जरूरी नहीं है। केवल अपने अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार और आधुनिक विज्ञानकी शाखाओंका ज्ञान प्राप्त करनेके लिए ही अंग्रेजी जरूरी है। उन्होंने जोर देकर कहा कि हिन्दी पढ़ना इसलिए जरूरी है कि उससे देशमें भाईचारेकी भावना पनपती है। हिन्दीको देशकी राष्ट्रभाषा बना देना चाहिए। आगे बोलते हुए उन्होंने कहा कि हिन्दी, जो काशी विश्वनाथकी भाषा है, आम जनताकी भाषा होनी चाहिए। आप चाहते हैं कि हमारा राष्ट्र एक और संगठित हो, इसलिए आपको प्रान्तीयताके अभिमानको छोड़ देना चाहिए। हिन्दी तीन ही महीनोंमें सीखी जा सकती है। जनताका मेरी भूरि-भूरि प्रशंसा करना मुझे पसन्द नहीं है। मैं तो अपने सिद्धान्तोंपर व्यावहारिक जीवनमें अमल होते देखना चाहता हूँ । मेरा विश्वास है कि चरखसे देशको मुक्ति मिलेगी। मेरी रायमें चरखा मशीन-गनों और युद्ध-पोतोंका काम करेगा। जब ईस्ट इंडिया कम्पनी यहाँ आई, उसने कताईपर घातक प्रहार किया और तभीसे भारतका नैतिक और आर्थिक अध:पतन शुरू हुआ। मैं आपसे कहूँगा कि आप पश्चिममें बनी भड़कीली एवं चमकदार पोशाकें न पहनें। आपको घरमें कते-बुने सादे कपड़ोंसे, वे चाहे कितने ही खुरदरे क्यों न हों, सन्तुष्ट होना चाहिए, क्योंकि घरके बने कपड़ेके पीछे एक इतिहास है, उसकी अपनी आत्मा है, अपना सौंदर्य है। इसके बाद वे उड़ीसाकी दयनीय दशाके बारेमें बोले। फिर उन्होंने वकीलों और विद्यार्थियोंसे असहयोग करनेका अनुरोध करने- के बाद कहा कि यदि आप सब मेरी सलाह नहीं मानेंगे तो आप अपने प्रति ही नहीं, अपने देशके प्रति अपना जो कर्तव्य है उसकी भारी उपेक्षा करेंगे। प्रसंगवश उन्होंने भारत में भयानक रूप से प्रचलित मद्य-पानकी आदतकी निन्दा की। अन्तमें


  1. १. पीपुल्स पार्कमें किये गये अपने सार्वजनिक अभिनन्दनके उत्तरमें यह भाषण दिया था ।