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भाषण : दूसरे प्रस्तावपर



अहिंसापर बढ़ रहे हैं। उन्होंने कहा, फिर भी मुझे लगता है कि कमेटीको सविनय अवज्ञाके उस रूपकी सिफारिश नहीं करनी चाहिए जो उसके हिमायतियोंके मनमें है। यद्यपि यह सच है कि कांग्रेसके प्रस्तावोंमें जिस सविनय अवज्ञाकी कल्पना की गई है, उसका एक रूप कर न देना भी है, फिर भी इसे कुछ खास कानूनों या आदेशोंको लेकर, चाहे वे उचित हों या अनुचित, सरकारके विरुद्ध सविनय अवज्ञाके किसी कार्य- क्रमके अंगके रूप में शामिल नहीं माना गया है। सविनय अवज्ञाकी जिस योजनापर दक्षिण आफ्रिकामें मैंने अमल किया था और जिसका मैंने अपने मनमें विकास किया है वह कुछ ऐसी है, जिसका प्रयोग अभी नहीं किया जा सकता। यदि देश जैसा में चाहता हूँ, उस ढंगसे पूरी तरह सुसंगठित हो जाये और संयमसे चलना सीख ले, तो सविनय अवज्ञाको कार्यान्वित करनेका समय आया माना जायेगा । अभी तो जो स्थिति है उसके बारेमें मेरा खयाल है कि यद्यपि जनताके बीच अहिंसाकी भारी प्रगति हुई है, फिर भी एक ऐसा तत्व है जिसे में, बेहतर शब्दके अभावमें, भीड़की आदत, उसका अपना कानून कहूँगा; और जब में इन शब्दोंका प्रयोग करता हूँ तो मेरा अभिप्राय इनके गलत अर्थसे नहीं है, बल्कि यह है कि अब भी लोग उतना अधिक संयम नहीं सीख पाये हैं जितने संयमकी जरूरत उस समय होती है जब उनकी सबसे प्रिय आकांक्षाएँ कुचली जाती हैं या जब अत्यन्त उत्तेजनात्मक परिस्थितियों में उनके महान नेता उनसे छीनकर जेल भेज दिये जाते हैं। इसलिए जबतक वे पूरी तरह संयम रखना नहीं सीख लेते, तबतक उन्हें सविनय अवज्ञाकी शुरुआत नहीं करनी चाहिए। निश्चय ही मुझे यह देखकर खुशी होती है कि लोग इस दिशामें काफी आगे बढ़े हैं। यदि कोई व्यक्ति किसी ऐसे विशेष आदेश या कानूनके विरुद्ध, जिसे उसका हृदय कहता हो कि इसका पालन नहीं किया जा सकता, सविनय अवज्ञा करनेकी जिम्मेदारी अपने सिर आप ही लेता है तो वह वैसा करनेके लिए स्वतन्त्र है। इसका उदाहरण श्री याकूब हसनका[१] मामला है। परन्तु वह ऐसा केवल अपनी ही जिम्मेदारीपर कर सकता है, कांग्रेसके नामपर नहीं।

[ अंग्रेजीसे ]

हिन्दू, १-४-१९२१






  1. १. देखिए “भाषण : गुजरांवालामें", १९-२-१९२१ ।