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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


सिद्ध होती जायेगी वैसे-वैसे निस्सन्देह अधिक पारसी इसमें शामिल हो जायेंगे। मैं मानता हूँ कि पारसियों और अन्य सब भाइयोंको लड़ाईमें जल्द से जल्द शामिल करनेका सबसे अच्छा रास्ता यही है कि हम उनकी आलोचना न करें, उनके सम्बन्धमें कटु वचन न बोलें। जहाँ भूल जान पड़े वहाँ विनयपूर्वक उनकी भूलको बताना हमारा फर्ज है; लेकिन किसीको गाली देना अथवा अपशब्द कहना पाप है।

भाई बरजोरजी सात महीने में स्वराज्य प्राप्त करना मुश्किल समझते हैं और उनके जैसे अन्य अनेक भारतीय भी इसे मुश्किल मानते हैं। इसीलिए हमें यह सात महीनेकी अवधि रखनी पड़ती है। [अन्यथा ] यदि सबमें आत्मविश्वास आ जाये, हिम्मत आ जाये और सब अपना कर्तव्य पूरा करने में जुट जायें तो हम आज ही स्वराज्य प्राप्त कर लें। मैं इस वर्षके भीतर स्वराज्य प्राप्त करनेकी बात कर रहा हूँ क्योंकि मेरी मान्यता है कि हजारों भारतीय, जिन्होंने असहयोग करनेकी प्रतिज्ञा ली है, अपनी प्रतिज्ञाका दृढ़तापूर्वक पालन करेंगे। हमारा अपना अविश्वास हमारे रास्तेकी सबसे बड़ी बाधा है।

पारसी भाइयोंने हिन्दुस्तानकी सेवा की है। पारसी बुद्धिमान हैं। उन्होंने हिन्दु- स्तानको अपना देश बना लिया है। उनका सर्वस्त्र हिन्दुस्तान में है। उनकी मातृभाषा गुजराती है। लेकिन उन्होंने उसके साथ न्याय नहीं किया है, ऐसा कहे बिना नहीं रहा जाता। भाई बरजोरजीके पत्रको, यदि मैं उनकी ही गुजराती में यहाँ उद्धृत करता तो बहुत सारे गुजराती उसे कदाचित् पूरा-पूरा समझ भी नहीं पाते। ऐसे अनेक पारसी समाचार-पत्र हैं जो गुजराती भाषाका वध करते हैं, यह बात पारसी समाचार-पत्र पढ़नेवाला प्रत्येक पाठक जानता है। यदि वे सामान्य गुजराती लिखनेका निश्चय करें तो ऐसी कोई बात नहीं कि वे न लिख सकें। मलबारी[१] शुद्ध गुजराती लिख सकते थे। 'खबरदार'ने गुजरातीको अपने काव्यसे सुशोभित किया है। लेकिन इतनेसे ही सन्तोष कैसे माना जा सकता है? क्या वे इस बातको स्पृहणीय नहीं मानेंगे कि पारसी गुजराती भाषापर ममत्व रखें और उसे अपनी मातृभाषा समझकर उसकी सेवा करें ?

कोई पारसी लेखक कहेगा कि पारसी सामान्य रूपसे जो गुजराती लिखते हैं उसे ही शुद्ध गुजराती क्यों नहीं माना जा सकता ? ऐसी शंकाका समाधान करना तो आसान है। जो गुजराती, गुजरातके लाखों पढ़े-लिखे लोग बोलते हैं और लिखते हैं वही शुद्ध गुजराती है। गुजराती संस्कृतकी पुत्री है, इसलिए उसका आधार संस्कृत ही होना चाहिए, इसमें तो कोई शंका नहीं उठा सकता। पारसी लेखक और शिक्षक यदि चाहें तो गुजरातीकी सेवा कर सकते हैं। जैसे-जैसे हममें जनताके प्रति प्रेम बढ़ता जाता है वैसे- वैसे हममें अपनी भाषाके प्रति भी प्रेमभाव बढ़ना चाहिए। जब भाषाके प्रति हमारा प्रेम बढ़ेगा, और हमारा सारा प्रान्तीय कार्य गुजरातीमें चलने लगेगा तब हम कैसी गुजरातीका प्रयोग करेंगे? हम अपने कानूनोंकी रचना किस गुजरातीमें करेंगे ? हम अपनी विधान परिषदोंमें किस गुजरातीमें भाषण देंगे? हम अपनी पाठ्य-पुस्तकें किस गुजराती- में लिखेंगे ? गुजरातीके प्रति हमारा मनमाना व्यवहार हमारे देश-प्रेम और भाषा-प्रेमकी


  1. १. बहरामजी मेरवानजी मलबारी (१८५४-१९१२); कवि, पत्रकार और समाज सुधारक ।