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भाषण: राजमहेन्द्रीमें


न्यूनताका परिचायक है। देश-प्रेम हो और भाषा-प्रेमकी चिन्ता न हो, यह असम्भव है। हिन्दू, मुसलमान और पारसी तीनों कौमें गुजराती बोलती हैं। इन तीनों समाजोंके लोग व्यापारी होनेके कारण सारे हिन्दुस्तानमें और देश-देशान्तरमें घूमते हैं। वे सब गुजराती हैं, इस बातका परिचय उनकी भाषासे ही मिलता है। गुजरातीकी सेवा करना तीनों कौमोंका फर्ज है।

[ गुजरातीसे ]

नवजीवन, ३-४-१९२१

२६१. टिप्पणी

खादीकी महिमा

खादीके प्रचारका इतना ज्यादा असर हुआ है कि बुलन्दशहरमें एक भिरती युवकके मर जानेपर उसके कफनके लिए उसके सगे-सम्बन्धियोंने खादीका कपड़ा खरीदा और जातिके पंचोंने निश्चय किया कि कफनके लिए आगेसे खादीका ही इस्तेमाल किया जायेगा । खादीके सम्बन्धमें यदि लोगोंमें ऐसी पवित्र भावना फैल जाये तो हिन्दुस्तानको स्वराज्य मिलनेमें कितनी देर लग सकती है? जो समय जाया हो रहा है वह हमारी दुर्बलता अथवा हमारी अश्रद्धाके कारण ही हो रहा है। दुर्बलता अथवा अश्रद्धाके कारण हम अपना कर्त्तव्य पूरा नहीं करते।

[ गुजरातीसे ]

नवजीवन, ३-४-१९२१

२६२. भाषण : राजमहेन्द्रीमें

३ अप्रैल, १९२१

मैं तो जानता ही हूँ और आप लोगोंको भी जानना चाहिए कि बातोंका जमाना बीच चुका है। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीकी माँग'[१] है कि भारत ३० जूनसे पहले राष्ट्रको एक करोड़ रुपया दे । वह आपसे यह भी कहती है कि आप एक करोड़ स्त्री- पुरुषोंके नाम कांग्रेसकी पंजिकामें दर्ज कराएँ और भारतीय घरोंमें ठीक काम देनेवाले २० लाख चरखोंका प्रवेश करायें । आशा है आप अपने उत्तरदायित्वको पूरी तरह निभायेंगे। यदि हम ऐसा कर सके तो समझिये कि हम स्वराज्यको बहुत नजदीक खींच लाये हैं। किन्तु जबतक हिन्दू और मुसलमान इसमें हाथ नहीं बँटाते तबतक यह काम सम्भव नहीं है। हिन्दू-मुस्लिम एकता राष्ट्रके विकासके लिए उतनी ही आवश्यक है


  1. १. अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीने बेजवाड़ा १ अप्रैल, १९२१ को जो प्रस्ताव पास किये थे उनमें इस प्रकारकी मांग थी ।