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भाषण : एलौरमें


आवश्यकता नहीं है। स्वराज्य प्राप्त करने तथा खिलाफत और पंजाबपर किये गये अत्याचारोंका प्रतिकार करनेके लिए जिन चीजोंकी आवश्यकता है, वे हैं नितान्त वैयक्तिक शुचिता, विनम्रता, सदाशयता तथा अव्यवसाय | ईश्वर आपको आवश्यक बुद्धि, साहस, विवेक और सेवाकी भावना प्रदान करे।

[ अंग्रेजीसे ]

हिन्दू, ८-४-१९२१


२६३. भाषण : एलौरमें

आन्ध्र देशके अपने कुछ भाषणोंको मैं 'यंग इंडिया' में प्रकाशित करना चाहता था । किन्तु ऐसा सम्भव न हुआ। मैं राजमहेन्द्रीमें दिये गये अपने भाषणको प्रकाशित करनेके लिए भी बहुत उत्सुक था। किन्तु मेरे पास उस भाषणके कोई नोट नहीं थे। मैं एक साथी कार्यकर्त्ताके प्रयासके फलस्वरूप एलौरमें दिये गये अपने भाषणको प्रकाशित कर पा रहा हूँ। इस विवरणमें कुछ हृदतक राजमहेन्द्रीमें दिये गये मेरे भाषणका मुख्य विषय आ जाता है। कुल मिलाकर विवरण अनुपयुक्त नहीं है, इसलिए मैं इसे 'यंग इंडिया' के पाठकोंकी सेवामें प्रस्तुत करता हूँ।[१]

३ अप्रैल, १९२१

खड़े होकर भाषण न देनेके लिए आप मुझे क्षमा करें। आप जानते ही हैं कि मैं शरीरसे बहुत कमजोर हूँ ।

आप मुझे इस बात के लिए भी क्षमा करें कि आज मौलाना शौकत अली मेरे साथ नहीं हैं।

हम दोनोंने सगे भाइयोंकी भाँति लगभग एक सालतक भारतके कोने-कोनेका दौरा साथ-साथ किया और ऐसा करके हिन्दू-मुस्लिम एकताका पदार्थपाठ पढ़ाया। मौलाना शौकत अलीका दावा है कि वे अत्यन्त कट्टर मुसलमान हैं, और वे हैं भी; और मैं कट्टर सनातनी हिन्दू होनेका दम भरता हूँ। किन्तु हमें साथ रहने और साथ सेवा करनेमें कोई कठिनाई महसूस नहीं होती है।

किन्तु आप और मैं तो इसी वर्ष भारतमें स्वराज्य या धर्मराज्य स्थापित करनेकी जल्दीमें हैं, इसलिए आपको अब हम दोनोंसे साथ-साथ यात्रा करते रहनेकी आशा नहीं करनी चाहिए।

लोकमान्य तिलकके चित्रका अनावरण करके मुझे अत्यन्त प्रसन्नता हुई है। स्वराज्य उनके जीवनकी साँस थी । वे स्वराज्यके लिए जिये और स्वराज्यका मन्त्र जपते जपते ही उन्होंने अपनी जीवन लीला समाप्त की। इसलिए आपका उस महान देशभक्तके चित्रको एक निधि समझना सर्वथा उचित है । मुझे इस चित्रका अनावरण करनेके लिए


  1. १. गांधीजीके हस्ताक्षरोंके साथ यह भूमिका ११-५-१९२१ के यंग इंडिया में प्रकाशित भाषणकी रिपोर्टके प्रारम्भमें दी गई है ।