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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


बुलाया गया है। मैं इसे अपना गौरव एवं सौभाग्य समझता हूँ। मैं स्थानीय कलाकार- को उसकी इस कृतिके लिए बधाई देता हूँ। किन्तु महान व्यक्तियोंके चित्रोंके अनावरण तथा देवताओं और महापुरुषोंका गुणगान करनेके सौभाग्यके साथ हमारे कुछ कर्त्तव्य भी आ जुड़ते हैं। आपने इस पवित्र रस्मको पूरा करनेके लिए जो मुझे बुलाया है अतः मैंने यह मान लिया है कि आपने अपना कर्त्तव्य भी समझ लिया है। मेरी समझमें तो तिलक महाराजके चित्रके इस अनावरणसे यह प्रकट होता है कि आप पंजाब तथा खिलाफतके प्रति किये गये अत्याचारोंके प्रतिकार और स्वराज्यकी स्थापनाके लिए कृत- संकल्प हैं। हम अपना सब कुछ निछावर करके स्वराज्य प्राप्त कर लेनेपर ही उस महान् देशभक्तकी कीर्तिके अनुरूप उत्तराधिकारी होनेका अधिकार पा सकते हैं। मुझे एलौरकी महिलाओंके एक क्लबके उद्घाटनके लिए भी निमन्त्रित किया गया है। मैं इसे भी शुभ शकुन समझता हूँ। बहादुर बहनोंको खद्दर पहने घर-घर जाकर राष्ट्रीय कोषके लिए धन एकत्र करते हुए देखकर मुझे बड़ी खुशी होती है।

उसी प्रकार यह भी शुभ शकुन है कि आपने मुझे राष्ट्रीय महाविद्यालय (नेशनल कालेज) के उद्घाटनके लिए भी बुलाया है। आप लोगोंने इस महाविद्यालयके लिए ६७,००० रु० की अच्छी खासी रकम जमा कर ली है। मुझे राष्ट्रीय महाविद्यालयका उद्घाटन करते हुए बड़ी प्रसन्नता हो रही है। ईश्वर इस संस्थाको दीर्घजीवी करे तथा उसके सभी प्राध्यापकों और अन्य कार्यकर्त्ताओंके प्रयत्नोंसे प्राप्त हो सकनेवाला लाभ उसे मिले। मेरे विचारमें अध्यापकका पेशा संसारके उत्कृष्टतम पेशोंमें से है। स्कूलके अध्यापक भावी पीढ़ियोंके न्यासी हैं। मुझे आशा है कि इस महान् संस्थाके अध्यापकगण यह बात याद रखेंगे कि केवल वही शिक्षा सच्ची है जो बालक-बालिकाओंको आत्माभिव्यक्तिके लिए समर्थ बनाती है। मैं अत्यन्त विनम्रताके साथ स्कूलके अध्यापकोंसे कहना चाहता हूँ कि बालक और बालिकाओंको इस वर्ष जो कला सिखाई जानी चाहिए वह केवल चरखा चलानेकी ललित-कला ही है; कपास धुनने तथा वस्त्र बुननेकी कलाएँ भी इसमें शामिल हैं।

रुईके इस कमजोर धागेपर ही इस्लाम और भारतकी आबरू टिकी हुई है और उसीसे पंजाबमें किये गये दारुण अत्याचारोंका प्रतिकार किया जा सकता है। वर्षोंकी खोज और प्रयोग (और अब उस प्रयोगके साथ अनुभव भी जुड़ गया है) के बाद मुझे पूर्ण विश्वास हो गया है कि भारतीय जनताकी दारुण निर्धनता प्रत्येक घरमें चरखेका प्रवेश होनेपर ही दूर होगी। जबतक हम आधापेट खाकर जिन्दगी बसर करनेवाले अपने लाखों देशवासियोंकी दुरवस्थाको मौन होकर देखते रहेंगे तबतक हम अपनेको भारतकी सन्तान कहलानेका हक नहीं रखते। जबसे चरखा गया तभीसे हमारी अवनति शुरू हुई और तभीसे भारतमें इस दारुण निर्धनताका प्रारम्भ हुआ । भारतको स्वराज्य दिलानेकी खातिर हम स्त्री-पुरुषों, बालक-बालिकाओंका अपने पूरे अवकाशका उपयोग चरखा चलानेमें करना एक छोटेसे प्रायश्चित्तके सिवाय और कुछ नहीं है। विदेशी कपड़ेका एक टुकड़ा पहनना भी मैं पाप मानता हूँ और आपसे भी कहता हूँ कि आपमें से प्रत्येक इसे पाप ही समझे । बम्बई और अहमदाबादसे आनेवाले कपड़ेको भी मैं विदेशी कपड़ा ही मानता हूँ। हमारी कातनेवाली मिलें हमारे घरोंमें और हमारी बुननेवाली मिलें