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भाषण: विद्यार्थियोंकी सभा, बनारस में

शिक्षा नहीं मिली――निश्चय ही वह मिल कृत ‘Liberty’ के अध्ययनसे नहीं मिलती――वह स्वतन्त्र नहीं कहलाता। आपकी तालीम अरबिस्तानके लड़कोंसे भी हीन है। उस ओरसे हमारे देश में आये हुए एक व्यक्तिने मुझे बताया था कि वहाँके विद्यार्थियोंको जो शिक्षा मिलती है, हमारे विद्यार्थियोंकी शिक्षा उसकी चौथाई भी नहीं। अरविस्तानका एक भी विद्यार्थी इस हुकूमतको स्वीकार नहीं कर सकता। वहाँ उनके लिए डाक, तार और ट्राम आदि जारी किये गये; हवाई जहाज जारी करनेका लालच दिया गया और यह भी कहा गया कि वे उनके देशकी उस जलती हुई रेतको भी ठण्डा कर देंगे जिसपर घड़ी-भरमें खिचड़ी पक जाती है। तालीम देनेके लिए बड़ी शिक्षा-संस्थाएँ खोलनेका प्रलोभन भी उन्हें दिया गया। परन्तु वहाँके लड़के कहते हैं कि हमें यह सब नहीं चाहिए। वहाँके छात्रोंको अच्छी धार्मिक शिक्षा मिलती है। आपको भी वैसी धार्मिक शिक्षाकी जरूरत है। आप जिन परिस्थितियोंमें पढ़ते हैं, उनमें ऐसी ही शिक्षा मिलती है कि मनमें मनुष्यका डर रखना पड़े। परन्तु मैं तो उसे सच्चा एम० ए० कहूँगा जिसने मनुष्यका डर छोड़कर ईश्वरका डर रखना सीखा हो। आपमें इतना बल आ जाये कि आजीविका के लिए आपको किसीके सामने हाथ न फैलाना पड़े, तब आपकी शिक्षा ठीक कहलायगी। जब मनमें यह विचार घर कर ले कि जबतक मेरे हाथ-पैर साबित हैं, तबतक आजीविका प्राप्त करने के लिए मुझे कहीं भी सिर नहीं झुकाना है, आपकी शिक्षा तभी ठीक कहलायेगी।

अंग्रेज इतिहासकार कहते हैं कि भारत में तीन करोड़ लोगोंको दिनमें दो बार पेट-भर खानेको नहीं मिलता। बिहारमें अधिकांश लोग सत्तू नामक निःसत्व खुराक खाकर रहते हैं। जब भुनी हुई सक्कीका यह आटा, पानी और लाल मिरचोंके साथ गलेसे उतारते हुए मैंने लोगोंको देखा तो मेरी आँखोंसे आग बरसने लगी। आप लोगोंको वैसा खाना पड़े तो आप उसपर कितने दिन गुजार सकते हैं? रामचन्द्रजीकी भूमिमें――जनक राजाकी पुण्यभूमिमें――लोगोंको आज वी नहीं मिलता, दूधतक नहीं मिलता। ऐसी स्थिति में आप निश्चिन्त होकर कैसे बैठ सकते हैं? हमें यदि ऐसी शिक्षा नहीं मिलती कि हमारा प्रत्येक मनुष्य मैक्स्विनी बन जाये, तो उस शिक्षाका कोई अर्थ नहीं है। यदि हमें आजादीसे खानेको न मिले तो हममें भूखों मरकर आजाद होनेकी ताकत आनी चाहिए, मैं यह चाहता हूँ। अरब और मेसोपोटामियाके लड़कोंको ऐसी तालीम प्राप्त है। वे अंग्रेजोंसे दो-दो हाथ करनेका हौसला रखते हैं। वहाँ तो शस्त्र-बल मौजूद है, हमारे यहाँ वह नहीं है। परन्तु भारतकी सत्यवृत्तिम जबरदस्त आत्मिक शक्ति विद्यमान है, इसीलिए हम अत्याचारको हटा सकते हैं। असन्तोंका त्याग करनेका तुलसीदासजीका उपदेश है। मैं कहता हूँ कि यह हुकूमत राक्षसी है, इसलिए उसका त्याग हमारा धर्म है। त्याग करनेका अर्थ हिजरत करना ही होता है। परन्तु में वैसा करनेको नहीं कहता। देश छोड़कर हम कहाँ जायें? हिन्द महासागर अथवा बंगालकी खाड़ीमें समा जानेके सिवा हम और कहाँ जा सकते हैं। परन्तु तुलसीदासजीने कहा है कि असन्तोंका सर्वथा त्याग न कर सको, तो दूर अवश्य रहो। रावणके पकवानों और दासियोंका त्याग करके