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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

अशोक वाटिकामें केवल फल-फूलपर निर्वाह करनेवाली सीताजी जैसा शान्तिमय असहयोग करनेकी ताकत आपमें न आये, तो भारत नष्ट हो जायेगा; वह गुलामी में सड़ता ही रहेगा, इस बारेमें मुझे जरा भी शक नहीं।

यह हुकूमत राक्षसी क्यों है, इसके कारणोंमें मैं जाना नहीं चाहता। परन्तु पंजाबमें अत्याचार करनेवाली, छ:-छः, सात-सात वर्षके बालकोंको धूपमें चलानेवाली, स्त्रियोंकी लाज लूटनेवाली――और जिन कर्मचारियोंने ये अत्याचार किये, उनके लिए यह कहनेवाली कि उन्होंने कोई अपराध नहीं किया, उन्होंने तो हुकूमतको बचाया――ऐसी हुकूमतके अधीन पाठशालाओंमें पढ़ना मेरे खयालसे सबसे बड़ा अधर्म है। मेरे बुजुर्ग पण्डितजी इसमें धर्म देख पाते हैं। शास्त्र मुझे ऐसा नहीं सिखाते। में रावणके हाथों ‘गीता’ या ‘कुरान’ या ‘बाइबिल’ नहीं पढ़ सकता। जिसने ‘गीता’ का धार्मिक दृष्टि से अध्ययन किया हो, मैं तो उससे ‘गीता’ सीखूँगा। शराब पीनेवालेसे कैसे सीख सकता हूँ? मेरी आत्मा कितनी जल रही है, उसका मैं आपको अन्दाज नहीं करा सकता। इस सल्तनतकी मैंने तीस वर्ष सेवा की। मुझे उसका पश्चात्ताप नहीं है। सिर्फ इतना ही कहना चाहता हूँ कि अब में उसकी सेवा नहीं कर सकता, क्योंकि मैंने पंजाबके अत्याचार देखे हैं। साथ ही मुझे यह भी दीख रहा है कि यह हुकूमत कितने ही वर्षोंसे भारतका ऐसा सर्वनाश कर रही है कि उसके मुकाबले में पंजाबके अत्याचार कुछ भी नहीं। जब में आपकी उम्रका था, तब मैंने दादाभाई नौरोजीका[१] “पावर्टी ऐंड अनब्रिटिश रूल इन इंडिया" पढ़ा था। उसमें उत्तरोत्तर बढ़नेवाला देशका जो शोषण साबित किया गया था, क्या वह आज भी कुछ कम हो सका है? सैनिक खर्च बढ़ता ही गया है या नहीं? पेंशनोंमें देशके बाहर बह कर जानेवाली राशि भी बढ़ी है या नहीं? विदेशी मालका आयात अधिकाधिक बढ़ रहा है या नहीं? यदि इन प्रश्नोंका उत्तर ‘हाँ’ हो, तो मैं कहता हूँ कि लॉर्ड सिन्हा[२]-जैसे व्यक्ति गवर्नर भले ही बन जायें――यहाँतक कि पण्डितजी जैसे व्यक्तियोंको वाइसराय ही क्यों न बना दिया जाये, मैं उन्हें सलाम करने हरगिज नहीं जाऊँगा। असली स्थिति यह है कि इस राज-प्रथाके मातहत हमारी गुलामी बढ़ती ही जा रही है। और गुलाम जब गुलामीकी जंजीरकी चमक देखकर मुग्ध हो जाये, तब उसकी गुलामी सम्पूर्ण हुई कहलाती है। मैं कहता हूँ कि पैंतीस वर्ष पहले जो गुलामी थी, उससे हममें अब अधिक गुलामी है। हम अधिक हताश होते जा रहे हैं। हमारी कायरता बढ़ती जा रही है। इसलिए मैं तात्विक दृष्टि से कहूँ तो मुझे यह कहना ही पड़ेगा कि हममें गुलामीकी मात्रा बढ़ती जा रही है।

  1. दादाभाई नौरोजी ( १८२५-१९१७); प्रसिद्ध राजनीतिज्ञ तथा देशभक्त, ‘भारतके पितामह’ नामसे प्रसिद्ध। १८८६, १८९३ और १९०६ के कांग्रेस अधिवेशनोंके अध्यक्ष।
  2. सत्येन्द्र प्रसन्न सिन्हा (१८६४-१९२८); वाइसरायकी परिषद्के कानून सदस्य; प्रथम भारतीय गवर्नर। बम्बई १९१५ में हुए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस अधिवेशनके अध्यक्ष।