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विचारमय जीवन


उसने वैसा करनेका वचन दिया। वह अपने वचनका पालन करेगा अथवा नहीं, यह एक जुदा सवाल है ।

इस घटनाका मेरे मनपर अच्छा असर नहीं हुआ। मैंने देखा कि हमारा जीवन कितना विचारशून्य और दयाशून्य है। हमारे प्रत्येक कृत्यमें विचार और दया होनी ही चाहिए। और मैं स्पष्ट देख सका कि जहाँ दुर्बलता, असहायता और मूकता अधिक है वहाँ तो और भी अधिक दया होनी चाहिए। हम अपनी जातिपर — मनुष्यजाति- पर — दया करते हैं, उसमें आश्चर्यकी कोई बात नहीं है। वह तो होनी ही चाहिए। लेकिन कंगाल और अकालसे पीड़ित मनुष्योंकी अपेक्षा भी क्या पशु अधिक निराधार, दुःखी और मूक नहीं हैं ? अकालपीड़ित लोग तो भूखसे व्याकुल होकर हमारे विरुद्ध लड़ भी सकते हैं लेकिन बैल क्या करें ? वे तो न बोल सकते हैं और न विद्रोह कर सकते हैं ।

मुझे पाठ्य पुस्तकोंमें पढ़ा हुआ पशु-संवाद याद आया। उसमें निहित रहस्य बिल- कुल सच्चा प्रतीत हुआ। हमारा जीवन कितना विचारशून्य है ? मैंने विचार किया होता तो बैलोंकी और हाँकनेवालेकी जांच की होती और लकड़ीमें लगी हुई आर यात्राके आरम्भमें ही अलग करा दी होती ।

यदि गाड़ीवानने विचार किया होता कि कोई उसकी पीठमें आर भोंके तो उसे कैसा लगेगा तो वह अपनी हँकनीमें आर कभी नहीं रखता, बैलको मार-मार कर नहीं दौड़ता ।

मैं जैसे-जैसे विचार करता जाता हूँ वैसे-वैसे स्वराज्यकी शर्तें 'बढ़ती' जाती हैं। हमें आत्मशुद्धि करके स्वराज्य प्राप्त करना हो तो हम अपनी शुद्धिकी सीमा कहाँ बाँधेगे? अपने भंगी भाईको अपने सगे भाईके समान मान लेनेसे क्या हम उस सीमाको प्राप्त कर लेंगे? हमारे पशु भाई-बहनोंका क्या होगा? उनके प्राणोंमें और हमारे प्राणोंमें कितना अन्तर होगा ? हम खाते, सोते और सुख-दुःखका अनुभव करते हैं सो वे भी करते हैं। हम बहुत हुआ तो उनके बड़े भाई हो सकते हैं। इससे ज्यादा और क्या हो सकता है ?

हम दूसरोंसे उनका कर्त्तव्य करनेकी बात कहते हैं; वे ऐसा नहीं करते तो चिढ़ जाते हैं; कहते हैं कि "डायरको फाँसीपर चढ़ाओ।" हमारे विरुद्ध पशुकी फरियाद सुननेवाला हमारे बारेमें क्या सोचता होगा ?

हम हिन्दू गोरक्षाको प्राणरक्षाके समान माननेवाले हैं; गायको बचाने के लिए मुसलमानके साथ वैर ठानते हैं, लेकिन हम ही बैलको आर चुभोकर चलाते हैं, बैलपर बहुत ज्यादा बोझ लादते हैं, उसे बहुत कम खानेको देते हैं, फूंकाकी क्रियाके द्वारा खून निकलनेतक गायका दूध निकालते हैं। मुसलमानसे गाय न मारनेके लिए कहनेका हमें क्या अधिकार है ? मुसलमान गायको खुराकके लिए मारनेमें कोई पाप नहीं मानते। क्या हिन्दू यह कह सकते हैं कि बैलको आर चुभोनेमें कोई पाप नहीं है ? हम तो जान-बूझकर पाप करते हैं। कहते हैं कि अनजानमें किये गये पापको ईश्वर माफ कर देता है। अनजानमें हुए दोषोंका ही प्रायश्चित्त होता है। जान-बूझ- कर पाप करनेके बाद प्रायश्चित्त करनेसे क्या कोई शुद्धि प्राप्त की जा सकती है ?