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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


माँकी छातीसे चिपटा रहता है, वैसे ही मैं भारत-मातासे इसलिए चिपटा हुआ हूँ कि मुझे लगता है कि वह मुझे आवश्यक आध्यात्मिक पोषण देती है; यहाँ वह वातावरण है जो मेरी उच्चतम आकांक्षाओं के अनुकूल है। जब मेरा यह विश्वास खण्डित हो जायेगा, तब मैं उस अनाथके समान हो जाऊँगा जिसकी अभिभावक पानेकी आशा सदाके लिए समाप्त हो गई हो । तब हिमालयकी हिमाच्छादित शान्ति ही मेरी घायल आत्माको थोड़ा-बहुत विश्राम देगी। वैसे यह कहना अनावश्यक है कि जो हिंसा मुझे हिमालयकी ओर जानेको प्रेरित करेगी, वह भाषाकी अथवा साधारण उपद्रवोंकी हिंसा नहीं होगी, जिसे हिमालयकी याद दिलाते हुए मेरे आलोचक मेरे मुँहपर अकसर दे मारते हैं। ऐसी हिंसा असहयोगके कारण उत्पन्न हुई हिंसा नहीं है, न वह सच्चे असहयोगियोंकी हिंसा है। हिंसाके ये विस्फोट तो हमारे अनुशासनविहीन अतीतकी विरासत हैं। वह तो दिनपर-दिन काबूमें आती जा रही है। ऐसी हिंसा अत्यन्त नगण्य है और खुद उसे ही, भारतमें आज जो शान्ति सर्वत्र विराज रही है उसका एक बड़ा प्रमाण माना जा सकता है। जानबूझकर अथवा अनजाने ही परेशान करनेवाली तथा बहुधा गैरकानूनी सूचनाओंके जरिये अधिकारियों द्वारा उकसाये और भड़काये जानेपर भी जितनी शान्ति देशमें विराजमान है, यदि उतनी कायम रही तो वह हमें इस वर्षके भीतर स्वराज्य दिला देगी, क्योंकि उससे लोगोंके ध्येयकी एकता तथा उनका दृढ़ संकल्प व्यक्त होता है ।

(४) यदि ऐसी हिंसा फूट पड़े, तो अन्य असहयोगियोंको क्या करना चाहिए ? क्या उन्हें असहयोगका प्रचार बन्द कर देना चाहिए ?

कभी अगर ऐसी तूफानी हिंसा फूट ही पड़े, तब सच्चे असहयोगी उस हिंसाको रोकनेके प्रयत्नमें अपने प्राण दे देंगे। प्रश्न ३ में यह मान लिया गया है कि बच रहनेवालोंमें मैं अकेला ही होऊँगा । लेकिन फिर भी मान लीजिए कि मैं हिमालय- की ओर चला गया। (वह तो मौतसे भागना ही होगा ) । उस स्थितिमें शेष असहयो- गियोंसे निश्चय ही यह आशा की जायेगी कि वे मेरे कायरतापूर्ण पलायनके बावजूद, अपने विश्वासके प्रति सच्चे रहेंगे और तबतक अपनी श्रद्धाके जीवन्त प्रमाण बने रहें, जबतक हिंसाकी लपटें उन्हें भस्मसात् नहीं कर लेतीं। उपदेशककी आवाज तब रक्तकी प्रबल बाढ़में ही डूबेगी ।

(५) यदि आप पहाड़पर चले गये, तो उन बेचारे विद्यार्थियोंका क्या होगा, जिन्होंने सरकारी अथवा सरकारसे सहायता प्राप्त संस्थाओंका बहिष्कार किया है ?

प्रश्नकर्ता भूल गया है कि जब भारतमें हिंसा सब जगह फैल जायेगी, तब विद्यार्थियोंकी उपस्थितिके लिए सहायता प्राप्त अथवा गैर-सहायता प्राप्त कोई स्कूल- कालेज ही नहीं होंगे। केवल उन्हीं विद्यार्थियोंसे सरकारी स्कूल-कालेज छोड़नेके लिए कहा जाता है जो उनमें रहना पाप समझते हों । उनके सम्बन्धमें ऐसी संस्थाओं में वापस लौटनेका प्रश्न ही नहीं उठता। और मेरे पहाड़पर चले जानेसे विद्यार्थियोंके स्कूल-त्यागका क्या वास्ता है ? प्रत्येक विद्यार्थीसे आशा की जाती है कि उसका और