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उसके देशका सबसे अधिक हित किसमें है, इसका निर्णय वह स्वयं करे । स्वशासनके आन्दोलनको एक मनुष्यपर निर्भर नहीं बनाया जा सकता, बनाया भी नहीं जाना चाहिए । मैंने तो भारतको केवल एक नया और बेजोड़ अस्त्र दिया है, बल्कि कहिए, एक पुरातन एवं परीक्षित अस्त्रका अधिक विस्तृत पैमानेपर प्रयोग करना सिखाया है। देश उसे चाहे स्वीकार करे चाहे न करे । प्रयोग तो उसे स्वयं ही करना होगा, उसकी तरफसे मैं नहीं कर सकता । मैं तो अपने ही लिए उसका उपयोग कर सकता हूँ । यह मैंने किया है और मैं अपनेको मुक्त अनुभव करता हूँ। दूसरोंने भी किया है, और वैसा ही अनुभव वे भी करते हैं। यदि राष्ट्र इस अस्त्रका प्रयोग करेगा, तो वह मुक्त हो जायेगा ।

(६) आपके असहयोग आन्दोलनने कितनी प्रगति की है ?

इतनी कि मुझे लगता है स्वराज्य हमारी ओर दौड़ता आ रहा । यदि हम यही गति बनाये रखें, तो इसी वर्षके भीतर हमारा राष्ट्र स्वतन्त्र हो जायेगा ।

(७) क्या आपको खबर है कि अधिकांश असहयोगी कार्यकर्ता गैर जिम्मेदार हैं? क्या आपने कभी उनकी निन्दा की है ?

मुझे खबर नहीं है। बल्कि इसके विपरीत, मैं यह जानता हूँ कि उनमें से अधि- कांश कार्यकर्ता जिम्मेदार, गम्भीर, ईमानदार और वीर हैं। मैं समझता हूँ कि जहाँ- कहीं मैंने दायित्वहीनता देखी है, उसकी निन्दा की है।

(८) किन परिस्थितियों में आप अक्तूबरमें स्वराज्य प्राप्त करनेकी आशा करते हैं ?

मैंने इन स्तम्भोंमें उन परिस्थितियोंका बहुधा उल्लेख किया है। पत्र लेखकको पिछले अंक देखने चाहिए ।

(९) क्या चरखा भारतवर्षकी गरीबीकी समस्याको हल कर देगा ? यदि हाँ, तो किस प्रकार ?

अब मुझे पहलेसे भी अधिक विश्वास हो गया है कि चरखेके बिना भारतकी गरीबीकी समस्या हल नहीं हो सकती। भारतके लाखों कृषक किसी भी अनुपूरक धन्धेके अभावमें आधे पेट रहते हैं। यदि वे कताई भी कर सकें और इस प्रकार अपनी अपर्याप्त आयको बढ़ा सकें, तो वे कंगाली और दुर्भिक्षसे सफलतापूर्वक संघर्ष कर सकते हैं। मिलें इस समस्याको हल नहीं कर सकतीं । केवल हाथकी कताई ही इसे हल कर सकती है, दूसरी कोई चीज नहीं । जब भारतवर्ष हाथकी कताई छोड़नेके लिए बाध्य किया गया तब उसके पास इसके सिवा कोई दूसरा पूरक धन्धा नहीं था। सोचिए कि उस आदमीका क्या हाल होगा जिसे अचानक मालूम हो कि वह अपने निर्वाह भरके लिए आवश्यक जीविकाके चतुर्थांशसे एकाएक वंचित हो गया है। भारतकी जनसंख्याके ८५ प्रतिशतसे भी अधिक लोगोंका एक चौथाईसे अधिक समय खाली रहता है। और इसलिए भारतके पितामहने[१] देशसे बहुत बड़ी मात्रामें धन बाहर जाते रहनेका ठीक ही


  1. १. दादाभाई नौरोजी ।