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भाषण : नेलौरकी सार्वजनिक सभामें


अपने प्राणोंके समान ही प्रिय मानता हूँ और यदि मेरे मुसलमान भाई मुझसे गायकी रक्षाकी बात छोड़ देनेके लिए कहें तो भी, बजाय इसके कि गो-रक्षा छोड़कर उनकी दोस्ती मोल लूं, मैं मर जाना पसन्द करूंगा। लेकिन जब वह मुझे मसजिदके पाससे गुजरते हुए कुछ गजकी दूरीपर बाजा बन्द करनेको कहें तो मैं बहसमें पड़नेके बजाय उनकी बात तुरन्त मान लूंगा । लोग मेरे इस कथनका विश्वास करें कि हिन्दू धर्मका यह कोई आवश्यक अंग नहीं है। और यह तो मेरे धर्मका आवश्यक अंग है ही नहीं कि मैं मसजिदके पाससे गुजरते हुए बाजा बजाऊँ अथवा गाऊँ। मैं अपने मुसलमान भाइयोंकी ऐसी किसी भी माँग, यहाँतक कि पूर्वाग्रहके सामने झुकनेमें भी नहीं हिच किचाऊँगा । इसलिए, यदि मैं नेलौरका निवासी होता तो मैं इस प्रकारके मामलेको पंच-फैसलेके लिए किसी औरके सामने न जाने देता । मुसलमान भाइयोंके साथ सभी गैरबुनियादी बातोंपर समझौता करके तथा छोटी-मोटी बातोंपर टंटे बन्द करके ही हमारी उनकी स्थायी मित्रता निभ सकती है। दोस्तीमें सौदेबाजीके लिए गुंजाइश कहाँ है ? हरएक गैरबुनियादी समस्याके सम्बन्धमें मैं अपने मुसलमान भाइयोंके सामने झुक जाता हूँ। मेरे लिए ऐसा करना स्वाभाविक ही है; क्योंकि मेरा धर्म मुझे सारी दुनिया के साथ शान्तिसे रहनेका आदेश देता है; फिर मुझे इसके लिए जीवनका त्याग ही क्यों न करना पड़े। इसलिए यदि नेलौरके हिन्दू मुझसे यह पूछें कि जब हम मुसल- मान भाइयोंकी माँगको अनुचित और अन्यायपूर्ण समझते हैं, तब हमें क्या करना चाहिए, तो मैं कहूँगा कि “बहसमें मत पड़िए; उस अनुचित और अन्यायपूर्ण माँगको मान लीजिये। क्योंकि यदि हम इन मामूली झगड़ोंके सम्बन्धमें बहस करने लगे, तो दुनिया हमें उन बच्चोंकी तरह मानेगी जो अपने देशके शासनकी क्षमता नहीं रखते। और इसलिए अगर मुझसे यहाँके हिन्दू ऐसा कहें कि मुझे दी गई यह सूचना गलत हैं कि कुछ साल पहले हिन्दुओंने कभी मस्जिदके पाससे गुजरते हुए बाजा बजानेका अधिकार व्यक्त नहीं किया तो स्पष्ट ही उसका भी कोई अर्थ है । धार्मिक जीवनके ऐसे खेल- तमाशोंके लिए — इन चीजोंको मैं खेल-तमाशे ही कहता हूँ, सुखदाई खेल-तमाशे ही कहता हूँ — मैं अपने मुसलमान भाइयोंकी मर्जीपर ही निर्भर रहूँगा। सोचकर देखिए; कदाचित् नेलौरमें हिन्दू ४२ से ४५ हजारके बीचमें हैं। मुसलमान केवल ७ हजार हैं। इसलिए हिन्दुओंको मुसलमानोंका हित बड़े भाई होनेके नाते ट्रस्टियोंकी भाँति सुरक्षित रखना चाहिए। आपकी शराफत या स्वराज्य पानेकी योग्यताका तकाजा है कि प्रबल पक्ष होनेके कारण आप लोग स्वयं निर्बल पक्षकी रक्षाका सुखद भार ओढ़ें। अपने मुसलमान भाइयोंसे मैं यह कहूँगा कि आप कभी कोई अनुचित माँग पेश करनेका विचार न करें। अपने हिन्दू-भाइयोंके पूर्वग्रहों तथा भावनाओंका अध्ययन करना आपका काम होना चाहिए। जिन बातोंको आप उनकी कमजोरी समझते हैं उनके सम्बन्धमें आपके दिलोंमें गुंजाइश रहनी चाहिए। अगर खुदा पाकने हश्रके दिन यह पाया कि आप लोगोंने मसजिदोंके सामने नमाजके समय बाजे बजानेपर आपत्ति नहीं की और उस खललको बर्दाश्त कर गये तो वह आपको गुनहगार नहीं ठहरायेगा । मुझे इसमें तनिक भी सन्देह नहीं है कि जब आप उस फैसलेके दिन सर्वशक्तिमान परमेश्वरसे यह कहेंगे कि हम मजबूर थे, क्योंकि हम हिन्दू भाइयोंके पूर्वग्रहोंका आदर