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मेरी उड़ीसा यात्रा


कुंजोंसे सुशोभित लगभग बीस एकड़ भूमिपर स्थिति है। बच्चोंको वृक्षोंकी छाया में खुले मैदानमें शिक्षा दी जाती है। उद्योगमें बढ़ईगिरी मुख्य है। अब शिक्षाक्रममें कताई और बुनाईको भी शामिल किया गया है। गोपबन्धु बाबू बिहार विधान परिषद्- के सदस्य थे और इसलिए गवर्नर और अन्य बड़े-बड़े लोगोंको निमन्त्रित किया करते थे। मैंने देखा कि अपनी सम्मतियोंमें इन लोगोंने स्कूलकी हमेशा तारीफ की है।

सेवासमाज

गोपबन्धु बाबूने सेवासमाज नामकी एक संस्थाकी स्थापना भी की है। उसमें कुछ वकील और अन्य विद्वान व्यक्ति शामिल हैं। इनमें से अधिकांश, जबसे असहयोग आन्दोलन शुरू हुआ है तबसे हर महीने सिर्फ दस रुपयेकी रकम लेकर निर्वाह करते हैं। वे भिक्षा मांगकर मुट्ठी-मुट्ठी चावल लाते हैं। इस तरह हाल ही में स्वराज्यआश्रमकी भी स्थापना की गई है। इन सदस्यों और स्कूलके बालकोंकी खुराक मुख्य रूपसे दाल, भात, तेल और मिलनेपर घीकी चन्द बूंदें और हरी सब्जियाँ होती है। उनका मासिक खर्च सात आठ रुपये आता है। पहले थोड़ा घी लेते थे, लेकिन असहयोग आन्दोलन शुरू होनेके बादसे उन्होंने घी लेना बन्द कर दिया है। आज हिन्दुस्तानमें स्वेच्छासे कष्ट सहन करके अपना काम करनेवाली ऐसी कोई दूसरी संस्था शायद ही हो । मैंने जब पूछा कि इतनी निःसत्व खुराकका क्या शरीरपर असर नहीं होता तो गोपबन्धु बाबूने उत्तर दिया कि स्वराज्यकी खातिर क्या हम इतना कष्ट सहन नहीं कर सकते ? उनका यह उत्तर सुनकर मैं चुप रह गया। जब सिरपर विपत्ति आ जाती है तब कौन जाने ईश्वर कहाँसे उसे सहन करनेकी शक्ति दे देता है ।

जगन्नाथपुरी

गोपबन्धु बाबूका स्कूल देखनेके बाद हम जगन्नाथपुरी पहुँचे। पुरी समुद्रके किनारे स्थित है, इसलिए वहाँ हवाके झकोरे आते रहते हैं, लेकिन इससे कोई यह न माने कि आबोहवाके खयालसे पुरी, डुम्मस, पोरबन्दर या वेरावलसे[१] तनिक भी ऊँचा ठहरता है। कहावत है कि "नामी सेठ कमा खाय" सो बंगालियों और सरकारने उसे आरोग्य- स्थल ठहराकर प्रसिद्ध कर दिया है। वहाँसे बंगाली प्रतिवर्ष आरोग्य लूट कर जाते हैं। श्रद्धालु यात्री तो यह भी मानते हैं कि वे जगन्नाथके दर्शन करके और पण्डोंको दक्षिणा देकर पुण्य लूट लाते हैं। मैं जब जगन्नाथके दर्शन करने गया तब मनमें अनेक विचार आये । मन्दिर प्राचीन है, भव्य है। शिखरपर सुदर्शन चक्र लगा हुआ है और उसपर ध्वजा फहराती है । मन्दिर बहुत ऊँचा बनाया गया है। मूर्तियाँ नारायण और लक्ष्मीकी[२] हैं। बहुत बड़े आकारकी होनेके कारण वे भयानक लगती हैं। जहाँ मूर्तियाँ विराजती हैं वहाँ घोर अन्धकार है। वहाँ न हवा है और न उजाला ही है । एक-दो दिये वहाँ जलते रहते हैं।


  1. गुजरातके बन्दरगाह।
  2. वस्तुतः जिन तीन मूर्तियोंके लिए यह मन्दिर प्रसिद्ध है, ये मूर्तियाँ कृष्ण, बलराम और सुभद्रा की हैं ।