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२७७. भाषण : बम्बईकी सार्वजनिक सभामें[१]

१० अप्रैल, १९२१

महात्मा गांधीने सभामें देरसे आनेके लिए क्षमायाचना करनेके उपरान्त कहा : यह हमारा राष्ट्रीय सप्ताह है। यह ६ तारीखको आरम्भ हुआ था और १३ को समाप्त होगा। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीने हमसे अनुरोध किया है कि हम स्वराज्यके लिए स्वयं अपने प्रयत्नपर निर्भर रहें। हमारा उद्देश्य हर हालतमें एक वर्षके अन्दर ही स्वराज्य प्राप्त करना है। हमारा कर्तव्य है कि हम खिलाफत और पंजाबके अन्या- योंका निराकरण करायें। इस उद्देश्यकी पूर्तिके लिए अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीने देशके सामने तीन-सूत्री कार्यक्रम रखा है। हमें यह कार्यक्रम पूरा करना है। कार्य- क्रमकी पहली बात यह है कि हम राष्ट्रीय कांग्रेसके एक करोड़ सदस्य बनायें। हमें इसके लिए मुसलमानों और हिन्दुओं, पुरुषों और स्त्रियों सभीका सहयोग चाहिए। मैं चाहता हूँ कि ये सब लोग कांग्रेस आन्दोलनमें शरीक हो जायें और इसी उद्देश्यसे हमने सदस्यताकी फीस चार आने रखी है। प्रत्येक भारतीयका कर्त्तव्य है कि वह कांग्रेस संगठनमें अविलम्ब सम्मिलित हो जाये । कांग्रेसके कमसे-कम एक करोड़ नये सदस्य बनने चाहिए। हमारा दूसरा कर्तव्य यह है कि हम तिलक स्वराज्य कोषमें एक करोड़ रुपया इकट्ठा करें; मेरा खयाल है कि इतना धन एकत्रित करना कोई बहुत मुश्किल बात नहीं है। कुछ लोगोंके दिलोंमें सन्देह समाया हुआ है कि हम पूरे भारतसे यह बड़ी रकम इकट्ठी नहीं कर सकते। लेकिन मेरे मनमें ऐसा कोई सन्देह नहीं है। यदि हम भारतीय खिलाफत और पंजाबके अन्यायोंका निराकरण कराने के लिए एक करोड़ रुपया एकत्रित नहीं कर सकते तो हम स्वराज्यके योग्य कभी नहीं होंगे। यदि हम इस रकमको इकट्ठा न कर पाये तो हम स्वराज्यकी जिम्मेदारी सँभालनेके लिए अयोग्य सिद्ध होंगे। मुझे विश्वास है कि यदि बम्बईके लोग सच्चे दिलसे जुटे तो यह रकम बम्बईमें इकट्ठी हो सकती है। इतनी रकम तो अकेला पारसी या मारवाड़ी समाज ही दे सकता है । बम्बईका धनी व्यापारी समाज एक करोड़ रुपयेकी रकम बड़ी आसानीसे जुटा सकता है। तब समस्त भारतमें एक करोड़ रुपया इकट्ठा करना असम्भव कैसे है ? इसमें मुझे तनिक भी सन्देह नहीं है कि हम इस रकमको इकट्ठा कर सकते हैं। मैं बम्बईके निवासियोंसे प्रार्थना करता हूँ कि वे तिलक स्वराज्य कोषके लिए अपनी शक्ति-भर धन दें और केवल अपने हिस्सेकी रकम देकर ही चुप न बैठ जायें। हमें यह रकम ३० जूनसे पहले इकट्ठी कर लेनी है।


  1. १. यह भाषण स्वराज्य सभा और केन्द्रीय खिलाफत समितिके तत्वावधान में आयोजित सार्वजनिक सभामें दिया गया था ।