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२५. पत्र: हकीम अजमलखाँको

[२७ नवम्बर, १९२० के पूर्व][१]

प्रिय हकीम साहब,

पीपल महादेवके पासकी मस्जिदके बारेमें क्या झगड़ा है? क्या यह सुलझाया नहीं जा सकता? मैंने डा० इकबालको अलीगढ़के बारेमें लिख दिया है। मैं चाहता हूँ आप भी लिख दें।

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ७३६१ ए) की फोटो-नकलसे।

२६. भाषण: विद्यार्थियोंकी सभा, बनारसमें[२]

२७ नवम्बर, १९२०

मैं यहाँ जो दृश्य देख रहा हूँ उससे मुझे अलीगढ़का स्मरण हो आता है। विद्यार्थियोंसे जो-कुछ मुझे कहना था सो मैंने अलीगढ़ में कह दिया।[३] मैं अपनी जिम्मेदारी जानता था। मैं जानता था कि अलीगढ़का विद्यालय यहाँसे प्राचीन है। मुझे यह भी मालूम था कि मुसलमान विद्यार्थियोंको अलीगढ़से कितनी मुहब्बत है। मैं यह भी जानता था कि एक महान मुसलमानने उसे स्थापित किया है।[४] तब भी निडर होकर जो-कुछ मुझे कहना था, मैंने कहा। मेरा दिल रो रहा था कि मैं ऐसा क्यों कर रहा हूँ। जब मैं आप लोगोंको देखता हूँ, बड़ी-बड़ी इमारतें देखता हूँ तो मेरा हृदय रोता है। लेकिन आज ज्यादा रो रहा है, क्योंकि विश्वविद्यालयके प्राण मेरे पूजनीय बड़े भाई मालवीयजी हैं। मैं उनको छोड़कर कोई काम नहीं करता। जबसे मैं हिन्दुस्तान वापस आया तबसे यही खयाल था कि उन्हींके साथ अपना जीवन व्यतीत करूँगा। ऐसा मेरा सम्बन्ध अलीगढ़से नहीं था। अलीगढ़का प्राण कौन है सो मैं नहीं जानता। और इस विश्वविद्यालयके आँगनमें बैठा हुआ मैं इस भय से काँप रहा हूँ कि कहीं मेरे मुँहसे कोई ऐसी बात न निकल जाये जिससे मेरे आदरणीय भाईको कोई दुख हो। किन्तु मेरा धर्म मुझे सिखाता है और यही उनका भी धर्म है कि जिस

  1. डा० इकबालको पत्र लिखनेके उल्लेखसे लगता है कि यह पत्र भी अनुमानतः उसी दिन लिखा गया था।
  2. इसके एक दिन पहले गांधीजीने विश्वविद्यालयके अहातेके बाहर विद्यार्थियोंकी एक सभा में भाषण दिया था (देखिए “भाषण: विद्यार्थियोंकी सभा, बनारसमें”, २६-११-१९२०); लेकिन मालवीयजीके आग्रहपर उन्होंने युनिवर्सिटी हालमें विद्यार्थियोंकी सभामें फिर भाषण दिया। अध्यक्षता स्वयं मालवीयजीने की थी।
  3. देखिए खण्ड १८, १४ ३६७।
  4. सर सैयद अहमद इसके संस्थापक थे।