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भाषण: विद्यार्थियोंकी सभा, बनारसमें

भी निश्चय हो तो आप इसको छोड़ दीजिए। लेकिन अगर आप इस सल्तनतको राक्षसी न समझें जिसने पंजाबपर इतना अत्याचार किया, मुसलमानोंको धोखा दिया, हिन्दुस्तानसे दगा किया उससे....[१]विद्यार्थियोंको भी कुर्बानी करनी चाहिए। और जो-कुछ मुझे कहना था मैं कल कह चुका हूँ। मैं इस पवित्र स्थानमें अपने पूजनीय भाईके सामने सिर्फ यह कहना चाहता हूँ कि जो कोई इस शिक्षणको छोड़ना चाहता है, वह एक बड़ा भारी काम कर रहा है। इसीमें स्वतन्त्रता है। आप अपनी सभ्यता मत छोड़िएगा, किसीसे घृणा मत कीजिएगा। बाहर जाकर कष्ट बर्दाश्त कीजिए। मैं यह भी कहना चाहता हूँ कि मैं आपके लिए कोई प्रबन्ध नहीं कर सकता। अगर मैं यहाँ आपके साथ रह सकता तो प्रबन्ध कराना कोई मुश्किल नहीं था। लेकिन मैं आपको कोई लालच नहीं देना चाहता। मैं सिर्फ इतना कह देना चाहता हूँ कि बाहर जाकर आप उद्धत न हों, स्वेच्छाचारी न बनें। संयम आपका धर्म है। सहिष्णुता न छोड़िएगा। शान्त चित्तसे सब काम कीजिएगा। मात तासे पूछिए। अगर आपका दिल पक्का हो गया है और वे नहीं मानते तो उनसे दलील कीजिए। अगर आप उनकी बात ठीक मानते हों तो उनकी बात स्वीकार कीजिए। अगर आप उनकी बात गलत मानते हों और अपनी आत्माकी बात सच मानते हों तो फिर उसे स्वीकार कीजिए। आप विनयपूर्वक उनकी बातको अस्वीकार कर सकते हैं। ऐसा हिन्दू धर्म कहता है। यह आपकी परीक्षा है। अपने विनय से असहयोगको सुशोभित कीजिए, स्वेच्छाचारी न बनिए। अपनी प्रतिज्ञाको भंग न कीजिए। दो बातें याद रखिएगा, एक तो असहयोगमें आपकी विनयकी शिक्षा निहित है। दूसरी बात यह कि हमें बड़े आत्म-बलिदानकी आवश्यकता है। गिरी हुई हालत में हम लोग नामर्द बन गये हैं, पराधीन बन गये हैं, रोटीकी बात सोचते हैं। इसका प्रबन्ध करना कठिन है। अगर आप बलिदान करने को तैयार हैं तो [शिक्षण संस्थाएँ] छोड़िए, नहीं तो नहीं। ईश्वरसे मेरी प्रार्थना है कि वह आपको स्वच्छ भाव दे; आपको बल दे। आप अपने अन्तःकरणकी ही आवाजको स्वीकार करें। मैं कल चला जाऊँगा। जो लोग असहयोग करना चाहते हैं, जो ऐसा करनेकी बहुत दिनोंसे सोच रहे हैं उनको अपने अध्यापकोंसे बात कर लेनी चाहिए। मेरे भाई, मालवीयजी, से बातें करनी चाहिए। उनसे आशीर्वाद पाकर अपना काम कीजिए। जिन्होंने लिखकर नाम दे दिया है उनको अपने इरादेपर पक्का रहना चाहिए; और [इस प्रकार] जो लोग आना चाहें वे ही अपना नाम दें।

आज, ३०-११-१९२०

 
  1. यहाँ मूलमें कुछ शब्द मिट गये हैं।