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२७. भाषण: बनारसकी सार्वजनिक सभामें[१]

२७ नवम्बर, १९२०

श्री गांधीने...हिन्दूधर्मकी दृष्टिसे गोरक्षाका महत्व समझाया और फिर कहा कि केवल असहयोग ही स्वराज्य हासिल करानेमें आपकी मदद कर सकता है। स्वराज्य आपको गोरक्षाकी शक्ति देगा। उन्होंने कहा कि स्वदेशी चीजोंका इस्तेमाल और विदेशमें बनी चीजोंका बहिष्कार राष्ट्रीय और भौतिक प्रगतिके लिए जरूरी है। उन्होंने व्यापारियोंसे विदेशी मालका व्यापार न करनेका आग्रह किया। गांधीजीने उनसे अपील की कि वे देशकी गम्भीर स्थितिको अच्छी तरह समझें और निर्णय करें कि देशका प्रशासन अपने हाथ में लेनेके सर्वोत्तम उपाय क्या होंगे। हिन्दू-मुस्लिम एकतापर बोलते हुए उन्होंने कहा कि इन दो प्रमुख जातियों में प्रेम और सद्भाव ही राष्ट्रकी बेहतरीका एकमात्र रास्ता है।

[अंग्रेजी से]

लीडर, २९-११-१९२०

२८. बहनोंसे

डाकोरजीसे[२] मैंने धन माँगना आरम्भ[३] किया है। सौभाग्य से वहाँ भी उसका प्रारम्भ बहनोंसे ही हुआ। बहनोंमें जिस बहनने मुझे अपने गहन दिये वह दाल दलनेवाली एक मजदूर स्त्री थी। जब उसने अपनी कातकी बाली निकालकर मुझे दी तभीसे मैं इस निश्चयपर पहुँच गया हूँ कि हिन्दुस्तानकी स्त्रियाँ शान्त असहयोगकी पवित्रता को समझ गई हैं। इसके उपरान्त जो अनुभव हुए वे तो अलौकिक ही कहे जा सकते हैं। अहमदाबादकी लड़कियोंने अपनी चूड़ियाँ, अंगूठियाँ और गलेकी जंजीर उतार डाली; पुनामें तो गहनोंकी बरसात हुई। बेलगाँव, धारवाड़, हुबलीमें भी यही दृश्य दिखाई दिया। दिल्ली में मुसलमान बहनोंने भी, जो पर्दमें थीं, अपने गहने, नोट और धनराशि दी।

हिन्दुस्तानकी बहनें जागृत हो जायें तो स्वराज्यको कौन रोकेगा? स्त्रियाँ धर्मकी रक्षा करती आई हैं। उन्होंने ही देश स्वतन्त्र बनानेवाले वीर पुरुषोंको जन्म दिया।

  1. यह सभा बनारस हिन्दू विश्वविद्यालयके उप-कुलपति आनन्दशंकर बापुभाई ध्रुवको अध्यक्षता में रामघाटके नजदीक हुई थी।
  2. गुजरातका एक तीर्थस्थान।
  3. देखिए खण्ड १८, पृष्ठ ४१६-१९।