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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

खिलाफतके मामले में हमारी माँग यह है: युद्धके आरम्भ होनेपर टर्कीके पास जितना इलाका था, वह सब उसे लौटा दिया जाये; लेकिन साथ ही अरबों और आर्मीनियावासियोंको आत्म-निर्णयकी पूरी-पूरी गारंटी दी जाये। जहाँतक पंजाबका सम्बन्ध है, वहाँ जो-कुछ हुआ, उसका पंजाबकी माँगोंके अनुसार पूरा परिमार्जन होना चाहिए। इसके बाद जनताके सिर्फ चुनिन्दा नेताओंकी इच्छाके अनुसार हमें पूरा स्वराज्य दिया जाना चाहिए। आप देखेंगे कि मैंने प्रत्येक अंग्रेजके नाम जो खुली चिट्ठी[१] लिखी है, उसमें यह बात स्पष्ट कर दी है।

हृदयसे आपका,

मो० क० गांधी

[अंग्रेजी से]

महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे।

सौजन्य: नारायण देसाई

३३. भाषण: इलाहाबादमें असहयोगपर[२]

२८ नवम्बर, १९२०

महात्मा गांधी भाषण देने के लिए खड़े हुए। लोगोंने भारी हर्षध्वनि की। हिन्दीमें भाषण[३] देते हुए उन्होंने प्रारम्भमें ही इस बातपर जोर दिया कि यह समय काम करनेका है, और भाषणों और सभाओंका नहीं। उन्होंने कहा कि यह आसुरी सरकार है और रावणके राज्य-जैसी है। उसने मुसलमानोंके साथ अन्याय किया है और पंजाबके अत्याचारोंके लिए वही उत्तरदायी है। यह भारतीयोंको अबतक धोखा देती रही है। आज भी उसको इसका पछतावा नहीं है, बल्कि वह हमसे यह कहती है कि हम उसके अत्याचारोंको भूल जायें। यदि आप इस सबको अनुभव नहीं करते तो मुझे आपसे कुछ भी कहना नहीं है; किन्तु आप ज्यों ही असली स्थितिको जान जायेंगे आपके सामन केवल असहयोग करनेके सिवा कोई रास्ता नहीं बचेगा।

इसके बाद महात्माजीने एकतापर जोर देते हुए कहा कि एकता अत्यन्त आवश्यक है। यदि आप सब एक हो जायें तो सरकार जिस तरह आपकी रायकी उपेक्षा अबतक करती रही है, उसका वैसी उपेक्षा कर सकना आप असम्भव कर सकते हैं। आप लोग एक बार एक हो जायें तो आप खिलाफत और पंजाबके अन्यायोंको दूर

  1. देखिए खण्ड १८, पृष्ठ ३९७-४००।
  2. यह भाषण मोतीलाल नेहरूकी अध्यक्षता में हुई सार्वजनिक सभा में दिया गया था। इस सभामें कर्नल वैजवुड, मौलाना आजाद और शौकत अली भी शामिल थे।
  3. मूल हिन्दी भाषण उपलब्ध नहीं है।