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भाषण: इलाहाबादमें असहयोगपर

करवा सकते हैं और स्वराज्य ले सकते हैं। सरकार आपकी सहायतासे ही भारतपर शासन चला रही है। किन्तु यह देखकर दुःख होता है कि हिन्दू और मुसलमान अभी तक एक दूसरेपर पूरा विश्वास नहीं करते लेकिन मैं आपसे पूछता हूँ कि क्या सरकारपर आपका कुछ भी विश्वास है? कालेसे-काले मनका हिन्दू भी इस्लामको खतरेमें नहीं डालेगा। आपको चाहिए कि वर्तमान सरकारको या तो सुधार दें या समाप्त कर दें। अपने इस ध्येयकी पूर्तिके लिए एकता बहुत जरूरी है। सरकारसे असहयोग करनेके लिए आपको आपसमें सहयोग करना चाहिए। सरकार भी आपमें फूट डालनेका प्रयत्न कर रही है। यह तो वह करती ही आई है और उसीके द्वारा भारतपर राज्य चला रही है। यदि हिन्दू और मुसलमान आज एक हो जाये तो संसारकी कोई भी शक्ति हमें दबा नहीं सकती। हमने देख लिया है कि हम तलवारसे स्वराज्य नहीं ले सकते। भारतीय आज जिस पौरुषहीन अवस्थामें हैं उसमें खुली लड़ाईका खयाल भी नहीं किया जा सकता; वह देशके हितोंके लिए घातक सिद्ध होगी। सरकार अपने सब साधनोंको काममें लाकर अपनी पूरी शक्तिसे हमारी राष्ट्रीय आकांक्षाओंको कुचलनेका प्रयत्न कर रही है; वह एक दलको दूसरेसे भिड़ा रही है और खुली धमकियाँ दे रही है। हमारा ऐसी सरकारसे भौतिक बलसे निबटने और उसे हटानेकी आशा करना सम्भव नहीं है। हमें हिंसाका मुकाबला हिंसासे करना भी नहीं चाहिए। हमें शैतानको सजा देने के लिए शैतानी साधनोंका उपयोग नहीं करना है। मैं अपने ३० सालके अनुभवके आधारपर कह सकता हूँ कि हम निर्दयता और छलकपटको, निर्दयता और छलकपटसे हीनष्ट नहीं कर सकते। जैसे उजाला अन्धेरेको दूर करता है, वैसे ही हम झूठको सत्यसेऔर बुरी शक्तियोंको आत्मबलसे निवृत्त कर सकते हैं। इसके अलावा, सरकारकी हिंसाके प्रयोगकी शक्ति बहुत जबर्दस्त है और इसीलिए भी नैतिक दृष्टिसे लोगोंका उसकी हिंसक शक्तिका मुकाबला हिंसासे करना अनुचित है। इसी बातको ध्यानमें रखकर कांग्रेसने आपके सामने अहिंसात्मक असहयोगका कार्यक्रम रखा है।[१]

स्कूलों और कालेजोंके बहिष्कारका उल्लेख करते हुए महात्माजीने अभिभावकों से पूछा ‘क्या आपका विश्वास यह नहीं है कि इस समय अपने बच्चोंको सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलोंसे निकाल लेना आपका कर्त्तव्य है? यदि आपका विश्वास ऐसा नहीं है तो आपको ऐसी सभामें नहीं आना चाहिए और यदि आप इसमें आ ही गये हैं।

  1. यहाँ १-१२-१९२० के लीडरमें इतना और दिया गया है: “सरकार हममें फूट डालनेका प्रयत्न करेगी। नरमदलीय लोगोंको भ्रमित किया जा रहा है, लेकिन आपका जिस बात में विश्वास है आपको उसपर कायम रहना चाहिए। आपको कौंसिलों, मतदान केन्द्रों, स्कूलों एवं कालेजोंका बहिष्कार करना चाहिए। ३० नवम्बरका दिन आ गया है; आप अपने मताधिकारका उपयोग न करें; लेकिन साथ ही आप उन लोगोंको, जिनका खयाल दूसरा हैं और जो मत देना चाहते हैं, सताएँ भी नहीं। जो लोग कौंसिलोंमें बैठे हैं उनसे कह देना चाहिए कि वे लोग जनताके प्रतिनिधि नहीं हैं। लेकिन जो लोग मत देने नहीं जाना चाहते, उन व्यक्तियोंको भी कौंसिलोंके सदस्योंसे यह आशा नहीं करनी चाहिए कि वे उनके लिए कुछ करेंगे।”