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भाषण: इलाहाबादमें

स्वराज्य प्राप्त करनेका स्वदेशी एक अमोघ उपाय है। उसके द्वारा पंजाब और खिलाफतके अन्यायोंका परिमार्जन कराया जा सकता है और राष्ट्रीय सम्मानकी रक्षा की जा सकती है। स्वदेशीके प्रचारका मुख्य भार भारतीय स्त्रियोंपर ही है और उन्हें यह अवसर चूकना नहीं चाहिए।[१]

[अंग्रेजी से]
बॉम्बे क्रॉनिकल, १-१२-१९२०

३५. भाषण: इलाहाबादमें

२९ नवम्बर, १९२०

महात्मा गांधीने कहा, उत्तरप्रदेश हिन्दुस्तानका केन्द्र है, इसलिए उससे देशके अन्य भागोंसे आगे रहनेकी आशा की जाती है। किन्तु दरअसल उसने अभीतक गुजरातसे ऊँचा स्थान पानेके योग्य कोई कार्य नहीं किया है। फिर भी में आशा करता हूँ कि वह आगे चलकर वर्तमान संघर्षमें उचित स्थान प्राप्त किये बिना नहीं रहेगा। उन्होंने झाँसीका उदाहरण दिया और कहा कि वहाँ हिन्दू और मुसलमान छात्रोंने ‘गीता’ और ‘कुरान’ हाथमें लेकर शपथ ली है कि वे सरकार द्वारा नियन्त्रित संस्थाओंको छोड़ देंगे।

हिन्दू-मुस्लिम एकताके प्रश्नपर बोलते हुए महात्माजीने खेदपूर्वक कहा कि उत्तर प्रदेश में सरकारकी चाल सफल हो गई है और उसने फूट डाल कर दोनों जातियोंको पौरुषहीन बना दिया है। उन्होंने दोनों जातियोंको उनके धर्मग्रन्थोंकी याद दिलाते हुए अनुरोध किया कि वे अपने मतभेद भुला दें। इतना कह चुकनेपर उन्होंने लखनऊसे मिले एक तारका उल्लेख किया और बताया कि वहाँ गायकी कुर्बानीसे सम्बन्धित एक प्रस्तावपर नगरपालिकाके सदस्योंमें कुछ गहरा मतभेद है। उन्होंने इस आरोपकी भी चर्चा की कि उन्होंने अलीगढ़का कालेज तो खाली करा दिया किन्तु बनारस-विश्वविद्यालय खाली नहीं कराया। उन्होंने कहा कि यह सब इस बातका द्योतक है कि हममें अभीतक आपसी विश्वास और सद्भावकी कमी है। मैं नहीं जानता कि ऐसे प्रश्न कैसे तय किये जायें। मैं तो हिन्दू विश्वविद्यालय और अलीगढ़ कालेज, दोनोंको ही खाली करा देना चाहता हूँ और उनमें अपना सन्देश लेकर गया भी हूँ। यह तो अपने-अपने कर्त्तव्यका प्रश्न है और इसमें जो सबसे आगे आता है वही अधिक सफल होता है, फिर वह चाहे अलीगढ़का कालेज हो या बनारसका विश्वविद्यालय, या कोई दूसरी संस्था हो। यदि कोई इस प्रकारके कर्त्तव्यके पालनमें यह सोचता

  1. भाषणके बाद कई महिलाओंने अपने आभूषण उतारकर राष्ट्रीय कार्योंके निमित्त दे दिये और स्वदेशीकी शपथ लेनेमें भी बहुत उत्साह दिखाया।