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एक सलाह

“तात्कालिक उपयोगिताकी नीति” शब्दोंमें एक हीक आती है, किन्तु वह शब्द समूह अपने-आपमें बुरा नहीं है। सविनय अवज्ञा वैध है, किन्तु वह तबतक वांछनीय या उपयुक्त नहीं है जबतक समस्त राष्ट्रमें पूरा आत्म-संयम नहीं आ जाता और जबतक वह यह नहीं सीख लेता कि उचित कानूनोंका पालन स्वेच्छापूर्वक किया जाना चाहिए; उनका पालन, उनकी अवहेलना करनेकी दशामें मिलनेवाले तत्सम्बन्धी दण्डका भय छोड़कर करना आवश्यक है। कर देना बन्द करना वैध है; किन्तु जबतक राष्ट्र समष्टिकी हैसियतसे अहिंसाको अपनेमें पूरी तौरपर पचा नहीं लेता तबतक यह अनुपयुक्त है। दूसरे शब्दोंमें कहा जाये तो अहिंसा असहयोगका केवल उपसर्ग या प्रत्यय-भर नहीं है, वह उसका अविभाज्य और मुख्य भाग है। उसके अपेक्षाकृत रौद्र, अधिक उग्र और शक्तिशाली रूपोंपर तबतक अमल नहीं किया जा सकता जबतक पर्याप्त भरोसेके साथ यह न कहा जा सके कि राष्ट्रने स्थिति समझ ली है और वह शान्तचित्त रहकर प्रतिबन्ध, कैद और उससे भी कठोर यन्त्रणाओंको सहन कर सकता है।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, १-१२-१९२०
 

४१. एक सलाह

मुझे निम्नलिखित गुमनाम सलाह मिली है:

महात्मा,

यह एक स्त्रीकी सलाह है; इसे सुनिए। आप चाहें तो उसे अमान्य कर दें, परन्तु ऐसा उसपर खूब सोच-विचार और सर्वज्ञ प्रभुसे प्रबोध तथा प्रेरणाकी हार्दिक प्रार्थनाके बाद ही करें। ध्यानको एकाग्रतासे बल और विविध दिशाओंमें उसके विलाससे दुर्बलता हाथ लगती है। आप असहयोगको केवल तीन बातोंतक सीमित रखिए――अर्थात् विदेशी चीजों, पुलिसकी नौकरी तथा सेनातक । इससे आप भीतरके सब मत-भेदोंको दूर करके अपने उद्देश्यको सबल बना सकेंगे और स्वराज्यकी प्राप्ति शीघ्र करा सकेंगे। अपना प्रयास मुख्यतया पूर्ण रूपसे नहीं, सीमावर्ती जातियों――सिक्खों, पंजाबियों, डोगरों और खासकर गोरखों तक सीमित रखिए। जैसा इतिहास सिखाता है, गुप्त समितियों द्वारा काम कीजिए, ढोल पीट कर नहीं। धमकियाँ मत दीजिए; प्रहार कीजिए सो भी मूलपर, शाखाओंपर नहीं। परमात्मा आपके तथा हमारे उद्देश्यको सफलता प्रदान करे।

श्रीमती एफ०

चिट्ठीमें तारीख नहीं पड़ी है। प्रत्यक्ष है कि यह चिट्ठी किसी स्त्रीकी लिखी हुई नहीं है। यह स्त्रियोचित भावनाओंसे इतनी दूर है कि यह किसी स्त्रीकी चिट्ठी नहीं हो सकती। पत्र-प्रेषक भारतकी स्त्रियोंको इस चिट्ठीमें जितना वीर दिखाना चाहता है, वे उससे कहीं अधिक वीर हैं। वह परमात्माकी चर्चा करता है, परन्तु ब्रिटिश