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हुल्लडबाजी

नीयतापर पनपता है और जो नीतिभ्रष्ट है। यदि असहयोग मूलपर प्रहार न करे तो वह असहयोग ही नहीं है। जब आप खुल्लमखुल्ला और ईमानदारीके साथ असहयोगमें भाग लेकर ब्रिटिश सरकारके इस विषैले वृक्षको सींचना छोड़ देंगे तभी आप उसके मूलपर प्रहार करनेवाले कहलायेंगे। गुप्त तरीकोंकी हिमायत शैतानकी हिमायत है; ऐसी हालत में लेखकका ईश्वरका नाम लेना निरर्थक है।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, १-१२-१९२०
 

४२. हुल्लडबाजी

उन सभी व्यक्तियोंके लिए, जिन्हें असहयोगियोंसे कोई शिकायत हो, ‘यंग इंडिया’-के स्तम्भ खुले हैं। किसी ‘जानकार’ द्वारा सम्पादकको भेजी गई एक चिट्ठी[१] यहाँ प्रकाशित की जा रही है। पत्रलेखकने अलग पत्र में अपना नाम दिया है और यह पत्र प्रकाशित करनेकी प्रार्थना की है। सार्वजनिक महत्वके किसी भी मामले में ऐसी प्रार्थना करनेकी जरूरत नहीं होती। यदि संवाददाताका कहना सच है तो यह धारवाड़के नवयुवकोंके लिए लज्जास्पद है। संवाददाताने इस घटनाका सम्बन्ध असहयोगसे जोड़ा है। आजकल हवा ही ऐसी चल पड़ी है कि अशोभनीय व्यवहारकी प्रत्येक घटना असहयोग से सम्बद्ध कर दी जाती है। अच्छा होता कि धारवाड़में मेरे मुकामके समय ही यह घटना मेरे ध्यान में लाई गई होती। तब मैं इस मामले की जाँच करके उसे निवटा सकता था। धारवाड़में छात्रोंकी मैंने एक सार्वजनिक सभा बुलाई थी, उसमें भी पत्थर फेंके गये थे। एक छात्रको तो बहुत गहरी चोट आ गई होती। मुझे यह देखकर खुशी हुई कि पत्थर फेंके जानेपर भी श्रोता शान्त बैठे रहे। मुझे यह भी बताया गया था कि धारवाड़में अब्राह्मणोंके आन्दोलनके सिलसिलेमें सभाओं में पत्थर फेंका जाना कोई असाधारण बात नहीं है। मैं यह बात कहकर केवल यह सूचित करना चाहता हूँ कि धारवाड़ इस तरह पत्थर फेंकनके लिए जितना बदनाम है उतना दूसरा कोई शहर नहीं है। इसलिए इस घटनाका सम्बन्ध असहयोग या किसी अन्य यूरोपीय विरोधी आन्दोलनसे जोड़ना ठीक नहीं है। यद्यपि संवाददाताके पत्रमें ऐसी कोई साफ बात नहीं लिखी गई है; किन्तु वह जो कुछ कहता है उससे यह स्पष्ट है कि लोग नाटक में लड़कियोंके भाग लेनेकी बातपर नाराज थे। संवाददाताका कहना

  1. इस चिट्ठीमें जिसे उद्धृत नहीं किया जा रहा है, संवाददाताने भारतीयोंके सहायतार्थ किये गये एक कार्यक्रमका उल्लेख किया है जिसका आयोजन धारवाड़ में भारतीयोंसे सहानुभूति रखनेवाली किसी यूरोपीय महिलाने किया था। इरादा पहले भारतीय लड़कियों द्वारा कोई नाटक अभिनीत करनेका था, किन्तु लड़कियोंके अभिभावकोंके कहनेसे उसके स्थानपर गाधन और कविता पाठका कार्यक्रम रखा गया। मनोरंजनके इस कार्यक्रमके बीच और अन्त में युवकोंकी एक भीड़ने, जिसे संवाददाताके कथनानुसार असहयोगियोंने भड़का दिया था, संयोजकों और अतिथियोंपर पत्थर फेंके थे।