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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मित्र श्री शौकत अलीने मुझे बताया है कि भारतीय भाषाओंमें उर्दूका साहित्य बहुत सम्पन्न है। इस बारेमें में उनसे सहमत हूँ। उर्दू, बंगला या गुजरातीसे अधिक शक्तिशाली है; क्योंकि उर्दू लिखनेवाले मौलवियोंने किसी विदेशी भाषासे नहीं अरबीसे प्रेरणा ली है। उन्होंने अंग्रेजीसे कभी कोई पुस्तक अनुवादित नहीं की। मेरा खयाल है कि उर्दू लिपि सीखने के बाद लड़के सादी और फारसीके दूसरे शायरोंकी कृतियाँ पढ़ सकेंगे।

उन्होंने खास तौरसे छात्रों को सम्बोधित करते हुए कहा कि आप आज स्वराज्यकी दिशामें एक कदम आगे बढ़े हैं। मैं आपसे अनुरोध करता हूँ कि आप अपने आचरणसे अहिंसात्मक असहयोगको सफल बनायें।

[अंग्रेजीसे]
लीडर, ३-१२-१९२०
 

४४. भाषण: फुलवारी शरीफमें[१]

२ दिसम्बर, १९२०

महात्मा गांधीने...सभामें हिन्दीमें भाषण देते हुए पहले श्रोताओंसे प्रार्थना की कि वे उन्हें बैठकर भाषण देनेकी अनुमति दें क्योंकि वे कमजोरीके कारण खड़े नहीं हो सकते। तत्पश्चात् उन्होंने कहा: मुझे खुशी है कि आज मुझे पीर साहबके प्रति सम्मान प्रकट करने और हिन्दुओं और मुसलमानोंको इतनी बड़ी संख्या में उपस्थित देखनेका अवसर मिला है। मैं आशा करता हूँ कि यहाँके हिन्दू और मुसलमान ईश्वर और देशके प्रति अपने कर्त्तव्यका पालन करेंगे। मैं इस्लामको उसके विनाशका जो आयोजन किया गया है उससे बचाने के प्रयासमें हूँ। हिन्दू हो या मुसलमान सभीका यह कर्त्तव्य कि वे इसमें मेरी सहायता करें। इसमें प्राण गँवा देना भी श्रेयस्कर है। मैं चाहता हूँ कि पहले तो पंजाबमें किये गये अत्याचारोंकी क्षतिपूर्ति की जाये और देशको स्वराज्य भले ही फिर मिले; ताकि ऐसे अत्याचारोंकी पुनरावृत्ति न हो। हिन्दू और मुसलमान एक ही माँ के दो बेटे हैं। उन्हें अनुभव करना चाहिए कि वे एक ही हैं। उन्हें शान्तिसे रहना चाहिए; वे हिंसाके रास्ते चलकर सफलता प्राप्त नहीं कर सकते। हमें अपनी तलवारें म्यानसे नहीं निकालनी चाहिए, और अपने सब काम बिलकुल अहिंसक रहकर करने चाहिए। हम सरकारको तभी सुधार सकते हैं जब हम उससे अपना पूरा सम्बन्ध तोड़ लें। कांग्रेस और मुस्लिम लीग-जैसी सम्मानित संस्थाएँ अपना फैसला दे रही हैं। इतना कह चुकनेके बाद गांधीजीने अपने कार्यक्रमके

  1. फुलवारी शरीफ (बिहार); यह भाषण एक सार्वजनिक सभामें दिया गया था जिसमें मौलाना अबुल कलाम आजाद, मौलाना शौकत अली और राजेन्द्रप्रसाद भी उपस्थित थे।