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भाषण: पटनामें

विभिन्न चरणोंका जिक्र किया और कहा: हम चाहते हैं कि विलायती चीजोंको काममें लाना बन्द कर दिया जाये। आप स्वदेशी चीजोंको ही काममें लायें। हमें अपनी माताओं और बहनोंको चरखे देने चाहिए। यदि वे भोंडे और महँगे भी हों तो भी उन्हें इसकी परवाह न करनी चाहिए। यह अत्यन्त सौभाग्यकी बात है कि पीर साहब हमारी सहायता कर रहे हैं और लोगोंको इस रास्तेपर चलना बता रहे हैं। यहाँ एक राष्ट्रीय मदरसा खोला जा रहा है और मुझे उसको खोलनेकी रस्म पूरी करनेके लिए कहा गया है। यह कहा गया है कि इसमें तो थोड़ेसे ही लड़के हैं; लेकिन इससे कोई अन्तर नहीं पड़ता। उन्होंने आगे चलकर कहा: में छात्रोंके लिए शिक्षाको वर्तमान प्रणाली-जैसी या उससे अच्छी कोई दूसरी योजना प्रस्तुत करना नहीं चाहता; मैं तो उन्हें बहादुर बनना और ईश्वर एवं अपने ऊपर विश्वास करना सिखाना चाहता हूँ। राष्ट्रीय विद्यालयोंमें उन्हें यह सिखाया जायेगा कि उन्हें जीवनकी आवश्यक वस्तुएँ सरकार नहीं देती, बल्कि ईश्वर देता है। तभी लोग स्वराज्य माँगने के अधिकारी बन सकेंगे। [१]

[अंग्रेजीसे]
सर्चलाइट, ५-१२-१९२०
 

४५. भाषण: पटनामें

२ दिसम्बर, १९२०

महात्मा गांधीने सभाम कुर्सीपर बैठे-बैठे भाषण दिया। उन्होंने कहा: चाहता हूँ कि इस्लामकी रक्षा हो, पंजाबके मामलेमें न्याय किया जाये और इस बातकी गारंटी दी जाये कि गुलामीके रूपमें किये गये अन्यायोंकी पुनरावृत्ति भविष्यमें न होने पाये। हमारे उद्देश्य केवल असहयोगसे ही पूरे हो सकते हैं। किन्तु इसके लिए हममें आपसी सहयोग होना आवश्यक है। मुझे खेद है कि हम आपसमें सहयोग नहीं करते। मैं देखता हूँ, हम संगठनके कामोंमें लगे रहकर भी भड़क जाते हैं और मतभेदोंको सहन नहीं करते। किन्तु मैं चाहता हूँ कि आप एक बात याद रखें। आपको यदि इस्लामकी रक्षा करनी है और स्वराज्य लेना है तो आपसमें सहयोग करना निहायत जरूरी है। मुझे बेतियासे यह दुःखजनक समाचार मिला है कि हमारे अपने ही भाइयोंने (यद्यपि वे पुलिसमें हैं) वहाँ एक तरहका मार्शल लॉ लागू कर रखा है।[२] जब

  1. इस सभाके बाद महात्माजी और उनके साथी मोटरसे ‘कौमी मदरसे’ गये। महात्माजीने मदरसेका उद्घाटन किया। सर्चलाइटने आगे खबर दी है: “वहां श्री गांधीने पासके एक छज्जेपर बैठी कुछ पर्दानशीन औरतोंको सम्बोधित करते हुए कहा कि आप लोग सूत काते और कपड़ा बुनें तथा उसका उपयोग अपने लिए तथा अपने पतियों और बाल-बच्चोंके लिए करें। आप विदेशों में बने महीन कपड़े पहनना छोड़ दें। उन्होंने स्त्रियोंसे प्रार्थना की कि वे पुरुषोंको सादगी सिखायें और उन्हें दृढ़ बनायें।”
  2. देखिए “भाषण: बेतियामें”, ८-१२-१९२०।