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भाषण: पटना में

दूसरी बात जिसपर मैं आपसे जोर देकर बात करना चाहता हूँ, यह है कि असहयोगका स्वरूप अहिंसात्मक है। आपको अपनी तलवारें म्यानोंमें रख लेनी पड़ेगी और पूर्ण आत्मसंयम सीखना होगा। जिन पुलिसवालोंने चम्पारनमें स्त्रियोंके साथ बदसलूकी की थी हम उनको भी चोट पहुँचाना नहीं चाहते। असल बात यह है कि यदि उनसे मेरी कहीं भेंट होती तो हिन्दुओंकी ओरसे में उन्हें विनयपूर्वक कहता कि जैसा उन्होंने किया है वैसा करना उनका काम नहीं था। मैं तो सत्यके बलपर विजय चाहता हूँ। किसी भारतीयको गाली देना या चोट पहुँचाना सदा ही अनुचित है और अशिष्टता भी। मैं किसी भी व्यक्तिको अपने ऊपर हाथ उठानेका अवसर नहीं देना चाहता क्योंकि में हिंसासे घृणा करता हूँ।

इसके बाद गांधीजीने धनके लिए अपील की। उन्होंने कहा: मैं एक महीनेसे रुपया माँगता आ रहा हूँ। मैं चाहता हूँ कि आप जो-कुछ दे सकें अवश्य दें। मैं लखपतियोंसे लाखों नहीं माँगता, मैं तो अपने ३० करोड़ लोगोंमें से हरएकसे एक-एक रुपया या एक-एक पैसा माँगता हूँ। इस सम्बन्धमें मुसलमानोंका कर्त्तव्य दुहरा है। उन्हें इस कोषमें स्मनकि पीड़ितोंका कष्ट दूर करने के लिए तो रुपया देना ही है, राष्ट्रीय मुस्लिम विश्वविद्यालय अलीगढ़के सहायतार्थ भी रुपया देना है। मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि आपका रुपया कांग्रेसके लिए या किसी अन्य कार्य में खर्च नहीं किया जायेगा; बल्कि विशुद्ध असहयोग चलाने में और स्कूल खोलनेमें, संक्षेपमें कहें तो स्वराज्य लेनके लिए खर्च किया जायेगा। मैं रुपयेकी व्यवस्थाके लिए एक समिति बना दूँगा और उसके खर्चका हिसाब नियमित रूपसे पत्रोंमें प्रकाशित किया जायेगा। इसके अलावा बिहारमें जो रुपया इकट्ठा होगा वह बिहारमें ही खर्च किया जायेगा। मुझे दुःख है कि मुझे रुपया माँगना पड़ता है, क्योंकि मैं अनुभव करता हूँ कि हममें से अनेक लोग जिन्होंने पहले रुपया इकट्ठा किया था, सच्चे नहीं थे और कभी-कभी तो उन्होंने लोगोंसे कांग्रेसके नामपर रुपया ठगा। गांधीजीने जनतासे सफलता प्राप्त करनेके लिए आवश्यक परिस्थितियाँ उत्पन्न करने की अपील की। जबतक हिन्दू और मुसलमान आपसमें भाई-भाईकी तरह नहीं रहते, जबतक वे एक दूसरेसे मिलकर काम नहीं करते, जबतक वे अपने गुस्सेपर काबू नहीं कर लेते और त्याग करनेके लिए तैयार नहीं हो जाते, जबतक दोनों कांग्रेस और लीगके[१] निर्देशोंका पालन नहीं करते तबतक वे शैतानी सरकारके शासनसे मुक्त नहीं हो सकते। यह तो स्वतन्त्रतासे पहलेकी तैयारी है। कौंसिलोंके बहिष्कारमें त्यागकी कोई बात नहीं है; किन्तु वह तो शुद्धिका एक साधन-मात्र है और में प्रभुसे प्रार्थना करता हूँ कि वह हमारी आत्माओंको शुद्ध करे।

[अंग्रेजी से]
सर्चलाइट, ५-१२-१९२०
  1. आल इंडिया मुस्लिम लीग।