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४६. भाषण: विद्यार्थियोंकी सभा, पटनामें [१]

३ दिसम्बर, १९२०

महात्मा गांधीने लड़कोंको सम्बोधित करते हुए कहा: मुझसे मौलाना शौकतअलीने कहा है कि हिन्दी भाषा इतनी अधिक दरिद्र है कि में श्रोताओंपर जितना प्रभाव डालना चाहता हूँ उतना हिन्दी में बोलकर डाल ही नहीं सकता। क्या आप लोग चाहते हैं कि मैं आपके सामने अंग्रेजीमें भाषण दूँ? इसपर सब लड़कोंने कहा कि वे उनका भाषण हिन्दुस्तानीमें सुनना चाहते हैं। तब गांधीजीने अपना भाषण हिन्दीमें आरम्भ[२] किया। उन्होंने बताया कि हिन्दुस्तानीसे उनका अभिप्राय क्या है। उन्होंने कहा कि बिहारी लोग जो भाषा बोलते हैं, वही वह भाषा है जो भारतको राष्ट्रभाषा हो सकती है। यद्यपि में देवनागरी लिपिको राष्ट्रीय लिपि बनानेके पक्षमें हूँ, फिर भी में सभी भारतीयोंसे प्रार्थना करता हूँ कि जबतक हमारे मुसलमानभाई देवनागरी लिपिको स्वीकार नहीं कर लेते तबतक वे देवनागरी लिपि और फारसी लिपि दोनों ही सीखें। छात्रों के कर्त्तव्य बताते हुए उन्होंने कहा कि सभी छात्रोंको उन सरकारी स्कूलों और कालेजों अथवा उन सभी संस्थाओंको जिनका सरकारसे कुछ भी सम्बन्ध है, छोड़ देना चाहिए। आगे चलकर उन्होंने बताया कि ब्रिटिश सरकारने किस प्रकार हिन्दु और मुसलमान दोनोंको धोखा दिया है और इस प्रकार अपने साथ सहयोगका अधिकार खो दिया है। उन्होंने वर्तमान शासनकी तुलना रावण-राज्यसे करते हुए कहा कि कुछ अच्छी धार्मिक बातें जैसे संयम, यज्ञ आदि तो रावण-राज्यमें भी विद्यमान थीं। लेकिन वे सब दूषित उद्देश्य से सम्पन्न की जाती थीं। इसलिए उनसे किसी शुभ परिणामकी अपेक्षा नहीं की जा सकती थी। जब लोकमान्य तिलक जीवित थे तब मेरा खयाल था कि वे जब अंग्रेजी शासनकी निन्दा करते हैं तब उसमें कुछ अत्युक्ति रहा करती है। परन्तु उनकी मृत्युके बाद जलियाँवाला बागकी घटना[३], टर्कीकी शान्ति-सन्धि और ऐसी ही अन्य घटनाओंने मुझे लोकमान्य तिलकसे सहमत होनेके लिए विवश कर दिया है। किन्तु फिर भी में लोकमान्य तिलककी ‘शठ प्रति शाठ्यम्की’ नीतिको नहीं मान सका हूँ। में शैतानका मुकाबला शैतानके तरीकेसे करना पसन्द नहीं करता। मुझे तो यही आवश्यक मालूम होता है कि शैतानको भगवानकी मददसे अर्थात् शुद्ध हृदय तथा शुद्ध उद्देश्यसे जीता जाये। खुदाने शैतानको सिर्फ अपने खुदाई साधनोंसे ही हराया था। वर्तमान सरकार चूँकि शैतानी सरकार है, इसलिए वह

  1. यह सभा मौलवी मजहरुल हकके निवासस्थानके अहातेमें राजेन्द्रप्रसादकी अध्यक्षता में हुई थी।
  2. मूल हिन्दी भाषण उपलब्ध नहीं है।
  3. यहाँ उस हत्याकाण्डका उल्लेख है जो १३ अप्रैल, १९१९ को जनरल डायरको आज्ञासे इस स्थानपर किया गया था; देखिए खण्ड १७, पृष्ठ १९०-९४।