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भाषण: विद्यार्थियोंकी सभा, पटनामें

भारतकी कोई सहायता नहीं कर सकती। मैं यह बात निर्भयतापूर्वक कहता हूँ कि इस सरकारको सुधारा या समाप्त कर दिया जाना चाहिए। यह कार्य सरकारको किसी प्रकारकी सहायता देकर या उससे कोई सहायता लेकर नहीं किया जा सकता। अपना भाषण जारी रखते हुए उन्होंने कहा कि मैं ‘गीता’ रावणसे नहीं पढ़ सकता चाहे वह उसके लिए कोई ऋषि ही क्यों न भेजे, क्योंकि उसमें भी उसका मंशा दूषित तो हो ही सकता है।

मुझे तो ऐसा लगता है कि पंडित मदनमोहन मालवीय अपने काशी विश्वविद्यालयमें जो शिक्षा देते हैं उसमें भी कुछ-न-कुछ खराबी है। भारत सरकार उनको खुश रखने की कोशिश कर रही है। हिन्दू विश्वविद्यालयके संगठनकर्ता यह नहीं देख पाते कि सरकारका हेतु अच्छा नहीं है। गुलामोंका मालिक गुलामोंको स्वतन्त्रताकी शिक्षा कभी नहीं दे सकता। मिलकी कृतियोंको पाठ्यक्रममें रखनेका मेकॉले और अन्य लोगोंका जो स्वतन्त्रता और स्वाधीनताके वातावरणमें पले थे, हेतु बुरा ही था। यह सरकारका कर्तव्य नहीं है। यदि में मुसलमान लड़कोंको ‘कुरान शरीफ’ पढ़ानेका दिखावा करूँ या मौलाना अबुल कलाम[१] हिन्दू लड़कोंको ‘गीता’ पढ़ानेका ढोंग रचें तो दालमें कुछ-न-कुछ काला माना जायेगा। मैं बाबू राजेन्द्रप्रसादसे [२] ‘गीता’ पढ़ सकता हूँ। मुसलमान लड़के मौलवियोंसे ‘कुरान’ पढ़ सकते हैं। मेरी मुक्ति ‘कुरान’ में नहीं, ‘गीता’ से होगी। मेरे लिए ‘गीता’ ही सर्वोत्तम धर्म-ग्रन्थ है। में उसका त्याग नहीं कर सकता। मेरे बुजुर्गोंने ‘गीता’ से स्वर्ग प्राप्त किया है और उन्होंने मुझे उसीका पाठ करना और उसमें श्रद्धा रखना सिखाया है। मैं किसी भी धर्मको अपने धर्मसे ऊँचा नहीं मानता और जिस दिन मेरा यह विचार बदल जायेगा उसी दिन में अपना धर्म बदल दूँगा। महात्माजीने आगे कहा: मैं स्वतन्त्रताका पाठ पढ़नेके लिए गुलामोंके पास नहीं जाऊँगा। स्वतन्त्रताकी शिक्षा तो अरब, पठान और मिस्री लोग दे सकते हैं। अरब लड़कोंको जब सभ्यता, शिक्षा या सरकारी नौकरियोंके रूप में प्रलोभन दिया गया तो उन्होंने उसे लेने से इनकार कर दिया। मैं लॉर्ड सिन्हासे स्वतन्त्रताकी शिक्षा नहीं ले सकता। हाँ, मौलाना शौकत अलीसे जरूर ले सकता हूँ क्योंकि उन्होंने अपने आपको स्वतन्त्र घोषित कर दिया है। सर एडवर्ड गेट[३] एक भले मनुष्य हैं। मैं उन्हें अच्छी तरह जानता हूँ। मैं यह भी मानता हूँ कि वे गवर्नरोंमें सबसे अच्छे हैं। लेकिन यदि वे मुझे मिल जायें, तो मैं उनसे यही कहूँगा कि आप जिस सरकारके नौकर हैं वह सरकार बुरी है। मैं आपके हाथसे स्वतन्त्रता प्राप्त नहीं कर सकता। श्री सी० एफ० एन्ड्रयूज अंग्रेज हैं। उन्होंने हमें यह सलाह दी है कि हम ब्रिटिश सरकारकी परवाह

  1. मौलाना अबुल कलाम आजाद।
  2. १८८४-१९६३; राजनीतिज्ञ और विद्वान; भारतीय संविधान सभाके अध्यक्ष, १९४६-४९; भारत के प्रथम राष्ट्रपति।
  3. चम्पारन सत्याग्रहके दौरान सन् १९१७ में बिहार और उड़ीसाके लेफ्टिनेंट गवर्नर।

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